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________________ ५५ मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन चचोरवौ उदीपन विभाव और देषन वारे के बचन अनुभाव और असया संचारी भाव इनतै ग्लानि स्थायी भाव व्यंगि तातै वीभत्स रस ।' इस प्रकार रस के चारों अंगों को बताते हुए प्राचार्य सोमनाथ ने उक्त छंद में वीभत्स की प्रतिष्ठा की है। नायिका वर्णन में कवि प्रचलित प्रणाली से पीछे नहीं रहता। परकोया को देखिए सुष पावति ज्यौं तुम त्यौं हमहू , कबहुंक तो भूलि इतैवो करौ। दुरि दूर ही दूर रहो अनते , छिनसे निस द्यौम वितैवी करौ॥ चित दैक सुजान सुनौ ससिनाथ , सनेह की रीति जितवौ करो। अषियांन की ताप रितवौ करो, सुरती मुसक्याइ चितेवौ करो॥१ और यह कृष्णाभिसारिका म्रगमदसार सब अंगनि लगायौ पाछै , अतर बसायौ नील अंबर . उदार में । छोर दीनी वेंनी कसी कंचुकी तनेनी करि , पेंनी करी डीठ अति अंजन के ढार में ।। सोमनाथ कहैं यों सिंगारि सजि चंदमुषी , छिपकै सिधारी रजनी के अभिसार में । कछू न सम्हारि टूटे मनिनिके हार, करी मदन सुमारि मन नंद के कुवार में ।।२ थोड़ा 'हाव' और देख लीजिए फिर इस प्रसंग को बन्द करेंगे प्रात उठी अरविंदमुषी निसि के करि केलि कलानि सौं पागी। पारसी हेरति ही उर मांझ अयान छटा सु निरंतर जागी ।। चारु कपोलनि में झलकी दूति कान के मानिक तें रंग रागी। जानि के पीक लकीर लगी सु गुलाब के नीर सौं धोवनि लागी ।। कवि ने सभी प्रसंगों को स्पष्ट बनाने के लिए स्वरचित और उपयुक्त उदाहरण दिए हैं। काव्य-गुण अलंकार वाली तरंग में अनेक प्राकृतियां, वर्ग, खाने, चित्र आदि हैं। मंत्री गति, अश्वगति, त्रिपदी, उर्हन तारा, धनुर्वधचित्र, गतागत १ 'परकीया सामान्या' नवम तरंग-रस पीयूष निधि । २ 'कृष्णाभिसारिका' एकादश तरंग। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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