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[ २ ] अनुसार मुख्यतः हिन्दी-ग्रंथों और हिन्दी-ग्रंथकारों की ओर रही है जिससे मत्स्य-प्रदेश में रचित बहुत से संस्कृत तथा राजस्थानी भाषा के ग्रंथों और उनके कर्ताओं का विवरण इस प्रबन्ध में नहीं पा सका है। फिर भी मत्स्यप्रदेशीय साहित्य की एक रूपरेखा अवश्य तैयार हो गई है । श्रीयुत गुप्तजी ने कई दिनों तक प्रतिष्ठान की ग्रंथ-सूचियों और ग्रंथों का निरीक्षण एवं अध्ययन करके अपने प्रबन्ध में आवश्यक संशोधन और परिवर्द्धन भी कर लिए हैं।
आशा है कि विद्वज्जन प्रस्तुत प्रकाशन से पूर्ण लाभान्वित हो कर विद्वान् लेखक के परिश्रम को सफल बनावेंगे।
जोधपुर, विजयादशमी, वि० सं० २
मुनि जिनविजय
सम्मान्य संचालक राजस्थान-प्राच्यविद्या-प्रतिष्ठान,
जोधपुर।
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