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________________ ४६ मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन ४६ प्रेमनिधि प्राननिधि पूरन कृपालनिधि प्रगट पियूषनिधि निधिन की निधि हो । तेजनिधि जैतनिधि भाग श्री सुजान निधि कवि शिवराम महाराज जसनिधि हो।। २ इस पुस्तक के पढ़ने से मैंने निम्न निष्कर्ष निकाले२ १. शिवराम की कविता उच्च कोटि की है। भाषा की स्वच्छता. अलंकारों का प्रयोग और शब्दों का चयन, सब पर पूर्ण अधिकार दिखाई देता है। २. इनकी कविता से भरतपुर राज्य की बहुत सी बातें मालूम होती हैं। साथ ही इनके तथा इनके आश्रयदाता के वंश-संबंधी बहुत सी बातों का ज्ञान होता है। ३. कवि की बहुज्ञता में किसी प्रकार का संदेह नहीं रह जाता । वे हिन्दी तथा संस्कृत दोनों भाषाओं के पूर्ण पंडित थे। भक्ति, राग और रस तीनों का सार एक ही स्थान पर उपस्थित करना इसका प्रबल प्रमागा है । ४. राग-रागिनियों का बहुत ही वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। उनके नामों की गिनती ही नहीं की गई वरन् उसका पूर्ण स्वरूप, कुटुम्बपरिवार सहित उपस्थित किया गया है। काव्य और गायन दोनों तरह से यह एक उत्तम प्रयास है। १ सूरजमल का दूसरा नाम 'सुजानसिंह' भी था। इन्हें सूजा, सुजान, सूरज, सुरजमल, सूरजमल्ल आदि अनेक नामों से संबोधित किया जाता था। २ कवि शिवराम को लक्षणकार और प्राचार्य मानने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं दिखाई देती। साथ ही ये एक उत्तम कोटि के कवि भी थे। चांदनी का चित्रण देखें... नभ सुरसरि की लहरि लहरति किधौं , छीरनिधि छोटा छिहरति छवि छाई है । रामरूप रंजित के रावटी सुधारि किधौं , फटिक महल भूमि पारसी बनाई है। पूरि के कपूर पूरि चंदन की चूरि व्यौम , पारद तुषार की बुषारी विषराई है। कीनों तास प्रासन निसां विलास चांदनी कि , चंद अरु चांदनी की चादर बिछाई है। इस छंद में उनके मित्र 'रामरूप' का नाम आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only wm www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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