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अध्याय २ - रीति-काव्य
उस समय तक भरतपुर राज्य में कई नगरों का निर्माण हो चुका था----
गोवर्द्धन श्रीमानसी गंगा सोभित पाई। जिनि पै श्री ब्रजराज जू कीनि कृपा बनाई ।।
पुनि पूर्व देस मथुरा वषानि । पुरमर्थ' दक्ष दक्षिण सुजानि ॥ सिनसिनी बुद्ध बाड़व वषानि । दक्षिण सु वैर सोभित सुवेस ।
पूनि दीघ महा उत्तर सदेस ।। इस पुस्तक में राग-रागनियों का जैसा सुन्दर विवेचन है वैसा बहुत कम देखने में आता है। इस ग्रन्थ को हम अच्छी तरह लक्षण ग्रन्थ की कोटि में ले सकते हैं, क्योंकि इसमें भक्ति, राग और रस तीनों की विशद व्याख्या की गई है। तीनों को देखते हुए राग की व्याख्या बहुत उत्तम दिखाई देती है । कवि की कविता के अंशों को देखने पर मालूम होता है कि वे संस्कृत के भी पंडित हैं
और उन्हें गणित का भी ज्ञान था। शिवराम की बहुज्ञता में किसी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता। वे भक्ति, राग, काव्य, गणित, शास्त्र, दर्शन आदि सभी विद्याओं में पारंगत थे। उनकी कविता का एक नमूना और देखिये जहां 'निधि' शब्द के द्वारा एक विचित्र चित्र उपस्थित किया गया है
१ सुभनिधि संभुनिधि सभानिधि सोभानिधि - सील कौं सलिलनिधि सब सुखनिधि हो । देवनि को दाननिधि दीनन कौ दयानिधि-प्रानन्द को निधि अरु नेह नवोनिधि हो । गुननिधि ज्ञाननिधि मान सम्माननिधि जदवस श्री सजान सील कूलनिधि हो। कलानिधि केलिनिधि करन कल्याननिधि कवि शिवराम काज राज कृपानिधि हौ॥१
२ रूपनिधि रसनिधि रसनि रसिकनिधि
रौर के हरननिधि निधने के निधि हो। वेद निधि विद्या निधि परम प्रवीन निधि विश्वनिधि बुद्धिनिधि ब्रिद्धि सिद्धिनिधि हो ।।
१ भरतपुर, भर्थपुर । २ सिनसिनी-भरतपुर के जाट राजाओं का उद्गम-स्थान । 8 भरतपुर से ३०-३५ मील--बयाना से मोटर द्वारा मार्ग । ४ भरतपुर का प्रसिद्ध कस्बा डीग, जो निश्चयपूर्वक दीर्घ का अपभ्रंश है।
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