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मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन
४३ इन कवि महोदय को जो हस्तलिखित पुस्तकें मुझे मिलीं उनमें गोविंदानंदघन की प्रतियों में ३०० से ३१० तक पत्र थे। इनके द्वारा दिए गए उदाहरणों से पता लगता है कि उस समय तक मत्स्य के उत्कृष्ट कवि सोमनाथ की काफी प्रसिद्धि हो चुकी थी। सोमनाथ के अनेक उदाहरण दिया जाना इसका ज्वलंत प्रमाण है । संभव है, इन महानुभाव का कवि सोमनाथ के पास आना जाना रहा हो और तभी इनके ग्रंथों का मत्स्य में इतना प्रचार बढ़ा हो । इस ग्रंथ-रत्न में चा
१. रस भाव विभाव अनुभाव सात्विक प्रथम अनुबंध २८५ छंद २. नायका नायक निरूपणं द्वितीय अनुबंध २४८ छंद ३. दूषण उल्लास निरूपरणं तृतीय बंध ३५ छंद ४. गुण अलंकार निरूपणं
चतुर्थ बंध ८७८ छंद उपर्युक्त वर्णन से इनके प्राचार्यत्व में किसी प्रकार का संदेह नहीं रह जाता । इस पुस्तक का विस्तार, इनका काव्य शास्त्र परिचय, काव्य के विभिन्न अंगों की विवेचनात्मक प्रणाली, मौलिकता प्रदर्शन, इनके प्राचार्यत्व की घोषणा करते हैं । साथ हो ये एक सुंदर कवि भी हैं ।
दो उदाहरण
संग अली नवली अलि की कर कंज की मंत्र कली लै फिरावै। अंग सुबासिन कोमल हासनि नैन बिलासनि मैंन नचावै ।। भूषन भेद की कौन कहै धुनि नूपुर ही की कही नहिं आवै । नृत्यति सी गति बानी विचित्रित मित्र गुविंद को चित्त चुरावे ।।
घुघराली अलक संवारी अनियारी भौहैं , कजरारी आखें कजरारी मतवारी मैं । धारी सारी जरतारी सरस किनारी वारी , मालती गुही है बैनी कारी सटकारी मैं । बारी बैस रूप उजियारी श्री गुविंद कहैं , बारी सुरनारी नरनारी नागनारी मैं । मिलन बिहारी सौं दुलारी सुकुमारी प्यारी ,
बैठी चित्रसारी की तिवारी सुषकारी मैं ॥ मत्स्य प्रदेश से संबंधित अनेक कवियों ने सुंदर कृतियों की रचना की। इनकी पुस्तकों को देखने से पता लगता है कि इनमें से बहुत से प्राचार्य पदवी के अधिकारी हैं।
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