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________________ अध्याय २ रीति - काव्य सन् १७५० से १६०० ई० तक का अधिकांश रीतिकाल के अंतर्गत ग्राता है और यही रीति- परम्परा मत्स्य में भी चली। यहां के अनेक विद्वान कवियों ने इस ओर ध्यान दिया और रीति के सभी प्रसंगों पर अपनी वाणी का उपयोग किया । पंडित रामचन्द्र शुक्ल के कालविभाजनानुसार रीतिकाल संवत् १६०० वि० में ही समाप्त हो जाता है, किन्तु मत्स्य प्रदेश में सन् १९०० ई० तक की प्रवृत्ति को देखते हुए १७५० से १६०० ई. तक का सम्पूर्ण काल रीतिकाल में ही रखना उपयुक्त होगा । हिन्दी साहित्य के इतिहास में रीतिकाल बहुत महत्त्व रखता है, और जहाँ तक संख्या का प्रश्न है, इस काल में कवियों को एक बाढ़ आ गई। यह बात तो नहीं कही जा सकती कि इस काल में की गई संपूर्ण कविता निकृष्ट कोटि की थी, क्योंकि जिस काल में बिहारी जैसे रसिक, भूषण और सूदन जैसे वीर काव्यकार, देव जैसे सम्पूर्ण कवि, सोमनाथ जैसे श्राचार्य, रसानन्द जैसे काव्य-मर्मज्ञ हों उसे हम निम्नकोटि का नहीं मान सकते । फिर भी इस काल के कवियों को एक बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की थी जिनकी कविता काव्य के वास्तविक गुणों से दूर पड़ती है । हिन्दी में रीति काव्य का प्रारम्भ संस्कृत के रीति ग्रंथों की पद्धति पर हुआ । प्राचीन काल से ही संस्कृत के काव्याचार्यों ने इस ओर अपना ध्यान दिया । एक बात हम अवश्य देखते हैं कि संस्कृत के प्राचार्य काव्य के विभिन्न अंगों के विश्लेषण की ओर अधिक ध्यान देते थे, कविता के क्षेत्र में इतना दखल नहीं रखते थे । उदाहरण के लिए मम्मट को हो लीजिये । उन्होंने सूत्र, वृत्ति, कारिका आदि के द्वारा काव्य के विभिन्न अंगों के तथ्य का प्रति सुन्दर प्रतिपादन तो किया किन्तु उदाहरण के रूप में जो अवतरण दिए वे ग्रन्य कवियों के ही थे । दुर्भाग्य से हिन्दी में काव्यत्व और प्राचार्यत्व मिश्रित-सा हो गया और ऐसा होने से साहित्य के दोनों अंगों को हानि पहुँची । संस्कृत साहित्य-शास्त्रियों के ग्रनुसार काव्य के अनेक सम्प्रदाय हैं, जिनमें पांच प्रमुख हैं Jain Education International १. रस-संप्रदाय - वैसे तो इस मत के प्रवर्तक भरतमुनि हैं जिनके नाट्य शास्त्र में 'रस' का सम्यक् विवेचन किया गया है । पर जन श्रुति के आधार पर रस का प्रथम आचार्य नन्दिकेश्वर माना जाता है । रस- निष्पत्ति के संबंध में भरत का प्रसिद्ध सूत्र था 'विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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