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________________ अध्याय १- पृष्ठभूमि और मुसलमान दोनों को मिलाने की चेष्टा इनके द्वारा भी हुई । इनका कहना था हिन्दू तुरक को एक हीसाब । राह बनाई दोनों अजायब ।। हिन्दू तुरक एक सो बुझे । साहब सब घट एकही सुझे । अलीबख्श' जैसे उच्च घराने के मुसलमान भी साहित्य-सृजन में भाग लेते थे। कुछ ऐसे परिवार रहे हैं जिनको जीविका ही साहित्यिक रचना और दरबारों में कवित्त-गायन पर चलती थी। राजस्थान के चारण और भाट विख्यात हैं । काव्य-कला इनका पेशा था-राजारों की प्रशंसा, उनका गुणगान, उनके पूर्वपुरुषों की गौरवगाथा को दरबारों में सुनाना । अलवर में बारहट' और भट्ट' लोग इस कार्य में बहुत आगे रहे हैं । भरतपुर में चौबे इस ओर सजग थे। साथ ही कुछ भाट और चौबदार इस ओर ध्यान रखते थे। इन लोगों का राज्य से संपर्क रहता था और उन्हें कुछ मासिक मिलता रहता था। राजकवि रखने की परम्परा बहुत प्राचीन है, किन्तु मत्स्य-प्रान्त के राजकवियों का क्रमबद्ध पृथक् वृत्तान्त उपलब्ध नहीं होता, हाँ, कवियों का बहुत बड़ा प्रतिशत राज्याश्रित था। कुछ लोगों को तो अब तक थोड़ी-बहुत 'परवरिश' मिलती रही, किन्तु अब यह प्रथा धीरे-धीरे लुप्त होने लगी है। इस प्रान्त के इतिह स पर दृष्टि डालने से प्रतीत होता है कि अलवर और भरतपुर के राज्य तो बड़ी विकट परिस्थितियों में निर्मित हुए। इन राज्यों को स्थापित करने का श्रेय व्यक्तिगत वीरता को है । भरतपुर का राज्य महाराज बदनसिंहजी ने १७३२ के लगभग स्थापित किया। यह समय घोर मार-काट का था और राज्य की स्थापना इधर-उधर से छीन-झपट कर की गई थी। इनके पिता चूरामन तो एक प्रकार से व्यवस्थित डाकू ही कहे गए हैं, किन्तु साथ ही एक वीर लड़ाका भी। बदनसिंहजी के पश्चात् सूरजमल को तो लड़ाइयों में अपनी जान ही दे देनी पड़ी। जवाहरसिंह की वीरता का गुणगान आज भी सर्वत्र होता है। इसी प्रकार अलवर के प्रतापसिंहजी ने भी अपना १ यह 'राव' कहलाते थे और इन्हें मंडावर की जागीर मिली हुई थी। अलवर नरेश ने लेखक को इनका परिचय 'प्रिंस अलीबख्श प्राँव मंडावर' कह कर दिया था। २ जैसे शिवबख्श। 3 जैसे मुरलीधर भट्ट। ४ सोमनाथ, वैद्यनाथ चौबे थे। आज तक इनका परिवार भरतपुर में दानाध्यक्ष कहलाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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