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________________ १५ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन समय ऐसा भी आया जब 'मेविस्तान' का ख्वाब भी देखा जाने लगा। सन् १६४७ में स्वतंत्रता प्राप्ति के अवसर पर भरतपुर और अलवर में मेवात मेवों से खाली हो गया था। अब पुनः मेव अपने गांवों में लौट आये हैं। इनके पश्चात् इस प्रान्त के निवासी ब्राह्मण, वैश्य आदि हैं। राज्य के साहित्यकारों में ब्राह्मणों का प्राधान्य रहा, इसके कई कारण हैं१. कवियों के प्रति पूज्य भाव का निर्वाह ब्राह्मण शरीर के प्रति अच्छा होता है। २. पठन-पाठन का कार्य ब्राह्मण परिवारों में ही होता था, उन्हीं के यहाँ पुस्तकें रहती थीं और उन्हीं में, उनसे मिलने वाली प्रेरणा। ३. पहले का बहुत कुछ साहित्य संस्कृत भाषा में था और ब्राह्मण ही इस देव-वाणी के अधिकारी समझे जाते थे। अतः साहित्य के क्षेत्र में वे ही आगे रहे। ४. प्रायः भारत के सभी भागों में ब्राह्मण ही राजकवि होते रहे । मत्स्य में भी इसी प्रवृत्ति का अनुकरण किया गया। साहित्य के क्षेत्र में कुछ वैश्य और कायस्थ भी अवतरित हुए। इस अनुसंधान में थोड़े ही ग्रंथ ऐसे मिले जिनके रचयिता निश्चित रूप से ब्राह्मणेतर हैं, जैसे-बल्देव खण्डेलवाल, गोविन्द नाटानी, अजुध्याप्रसाद कायस्थ, चतुर्भुज निगम और रसानन्द जाट । काव्य-प्रतिभा राजघरानों में भी मिलती है, जैसे भरतपुर के बल्देवसिंह और अलवर के बख्तावरसिंह। इस प्रान्त का बहुत-सा भाग हरिजनों से बसा हुआ है, जिनमें जाटवों (चमारों) की संख्या अधिक है। ये लोग अपने कार्य के अतिरिक्त खेती-बारी भी करते हैं। इन राज्यों में मुसलमान भी काफी थे। मेव तो सब मुसलमान ही थे और इनमें लालदास जैसे धर्म-प्रवर्तक और साहित्यकार हुए । लालदासजी' का संप्रदाय लालदासी कहलाता है, ये लोग लालदास को ही मानते हैं । इनका उपदेश निर्गुण संतों का सा है । राम-नाम-जप एवं कीर्तन को प्रधानता देते हैं । नम्रता, पवित्रता आदि का भी ध्यान रखते हैं । हिन्दू १ लालदासजी धोली दूब, अलवर, में संवत् १५६७ में उत्पन्न हुए। अलवर से १६ मील दूर बांबोली में अधिक रहते थे। इनकी बाणी का संग्रह 'लाल दासकी चेतावणी' के नाम से स्व. हरिनारायणजी पुरोहित द्वारा हुआ है। इनका 'मखदूम साहब' लालदासियों के लिए वेदसदृश है । भरतपुर के 'नगला' गांव में इनकी मृत्यु हुई । लालदासी साहित्य पर इधर और भी कार्य हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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