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________________ २४२ अध्याय ६- गद्य-ग्रन्थ इस वार्ता के आधार पर सूरदासजी के जीवन पर कुछ प्रकाश पड़ता है-- १. सूरदास जाति के राजमजूर थे । २. वे जन्मान्ध थे। ३. वे पहले होरी के भंडउवा बनाते थे। ४. गुसांईजी ने सूर के बनाये भडउवा सुने और कृष्ण की लीला लिखने की प्रेरणा दी। ५. गोवर्द्धनजी के आगे गाया जाने वाला राग आसावरी प्रचलित हुआ। जैसा पहले संकेत किया जा चुका है कि मत्स्य-प्रदेश का गद्य बहुत धीमी गति से चला । आज से कोई ६० वर्ष पहले गद्य का एक नमूना 'अलवर राज्य का इतिहास' नामक हस्तलिखित पुस्तक से नीचे दिया जा रहा है ____ 'जब से रावराजा प्रतापस्यंघ जन्म पायौ तब ते राजगढ़ में आनंद अधिकायौ संवत् सत्रासै पूरन समै सवाई जयसिंह सुरगवासी भये अरु इनके पीछे महाराज इसुरीस्यंघजी बरजोर जैपुर गद्दी ब्राज गये.... 'महाराज इसुरीस्यंघजी समस्त कछवाह सुभट कू जयपुर बुलवाये तामै कितनेक अमराव तो अंतरगत माधोस्यंघजी सू मिले रहे जैसी हवा देषी तैस ही उपाहने दये अरु नरूकान ने ईसरीस्यंघजी की ही अग्यानुसार स्वाम धर्म धार जुद्ध में जुटे'...' यह हिन्दी गद्य का नमूना हैं, अब इसी पुस्तक की खड़ीबोली के उर्दू मिश्रित पद्य का नमूना देखिए--- दिया उसको ईश्वर ने खुद अख्तियार। किये मोजे ढाई से ढाई हजार ॥ कहा कौन इरशाद आये यहां । कहां के हैं सरदार जाते कहां । इन्होंने कहा राव परताप नाम । कि है राजगढ़ माचहेड़ी मुकाम ।। दिया भेजके हलदिया छाजूराम । किया जाट से जाके इसने सलाम ।। हमारे अनुसंधान में कुछ हुक्मनामे तथा रुक्के भी मिले । ये फारसी और नागरी लिपियों में हैं। इनमें से केवल कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं। पहला हुक्मनामा राव प्रतापसिंहजी को मुगल सम्राट द्वारा ‘राजाबहादुर' का पद दिए जाने के संबंध में हैं । राव प्रतापसिंह मुगलों की ओर से भरतपुर के जाटों से लड़े थे। यह सब काम खुशालीराम हल्दिया के परामर्श से किया गया था। अपनी सेना के साथ प्रतापसिंह आगरा पहुंचे, और वहां मुगलों की सहायता की। इस युद्ध में जाटों की पराजय हुई और बादशाह ने प्रतापसिंहजी को 'राजाबहादुर' की पदवी दी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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