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________________ २३२ दूसरी प्रभा से : वचनिका -- 'काव्य को मूल कारण गुरु देवता प्रसाद जनित संस्कार सो शक्ति जानिये । शास्त्र कहिवे तें छंद कोश व्याकरण जानि इन के देखेते चतुरता होइ सो चतुरता । कवि कालिदासादिक इन की रचना देखनों रूप सिद्धता ताते होइ सो श्रभयास । अभ्यास कहा कि देखिये विचारिव में बारंबार प्रवृत्ति । ए तीनों मिलि काव्य के कारन हैं । वस्तु तें तौ काव्य को कारण मुख्य शक्ति ही है । याही तें शक्ति को काव्य की मूल कारणता कही श्रध्याय ६ गद्य-ग्रन्थ ... यह स्पष्ट है कि ऊपर लिखा गद्य बहुत कुछ सुगम है और समभने में कोई कठिनाई नहीं होती । इस पुस्तक में इस प्रकार के बहुत से उदाहरण हैं । प्रसिद्ध कवि सोमनाथ कृत 'रसपीयूष निधि' में प्रयुक्त गद्य का नमूना भी देखें । वीभत्स रस का उदाहरण दे कर उसमें विभाव आदि का स्पष्टीकरण अ. ऐसा प्रतीत होता है यह पुस्तक बहुत बड़ी थी। जो अंश प्राप्त हुआ है और जिस विस्तार के साथ काव्य-सिद्धान्तों को समझाया गया है उसके आधार पर पूरी पुस्तक के ग्राकार की कल्पना की जा सकती है । प्राप्त ३ प्रभावों की पत्र संख्या १३५ है । ग्रा. इस रीतिग्रन्थ में अनेक कवियों के उदाहरण दिए गए हैं। सिद्धान्त निरूपण में काव्यप्रकाश का अनुगमन किया गया है । पुस्तक का कविकृत मौलिक अंश गद्य में ही है । अतएव इसे गद्यग्रन्थों में सम्मिलित किया गया है । Jain Education International ई. पिंगल समझाते समय कविवर सोमनाथ की तरह इन्होंने भी अनेक चित्र श्रादि दिए हैं। पहाड़, वर्ग, पक्षी श्रादि अनेक प्रकार से पिंगल को समझाया गया है । जहां कवि ने अपने छंदों का प्रयोग किया है वहां 'स्वकृत' लिख दिया है । कविता की दृष्टि से इनकी रचना अच्छी होती थी। उदाहरण- 'स्वकृत--- मदजल मंडित गंड चंड लगि चंचरीक गन । हलत सुंड मनु ढूंड विविध जिहि पूजत सुरगन ॥ सेस दंत मद भक्तवंत सोभित अतंक गति । सेवित शेष सुरेश नरेश द्विजेश महामति ॥ सिंदूर पूर सोभित बदन, सदन बुद्धि भवभय हरण | इन्द्रादि देव वंदित चरन, लंबोदर कवि जन सरन ॥' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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