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________________ २२२ अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास-संबंधी कवि के लिखे अनुसार यह उनका २६वां ग्रंथ हैं--- ग्रंथ कियौ उनतीसवों, यह मन आनि प्रमोद । तरक सरोवर नाम है, दूजो सभाविनोद ॥१ तरक सरोवर पढ़त ही, जीते सभाविनोद । राजी करि राजानक, सुष पावै चहू कोर । सोभ मिले बड़ भाव तें, हम कौं गुरू किसोर । शक्ति दई कविता करन, मानि लही चहू अोर ।। ये महाशय राजाराम के पुत्र कान्यकुब्ज भारद्वाज थे भरद्वाज कुल में प्रगट, भये सु राजाराम । सात पुत्र जिनके भये, पंडित धनी उदाम ।। चारिन तें लघु कवि प्रगट, सोभनाथ है नाम । गुरु कै भाइन तै लह्यौ, गुरू ध्यान अविराम ।। 'सभाविनोद' में सभा में विजय प्राप्त करने की युक्ति बताई गई है। साथ ही प्रकृति-चित्रण के भी सुन्दर उदाहरण दिए गए हैं २. लाल ष्याल-यह ग्रंथ लाल नामक चिड़िया के बारे में हैं । लाल-संग्राम राजाओं का एक मनोविनोद होता था और इस पुस्तक में यही दिखाया गया है कि इस चिड़िया के युद्ध में क्या-क्या तैयारियां की जाती थीं और किस प्रकार युद्ध कराया जाता था । दुर्भाग्य से इस पुस्तक के रचयिता का पता नहीं १ कवि ने इस पुस्तक के दो नाम लिखे हैं---'तरक तरोवर' तथा 'सभाविनोद' इस पुस्तक के अतिरिक्त कवि के कम से कम अठाईस ग्रंथ और होने चाहिएं। बहुत कुछ खोज करने पर भी अभी तक और कोई ग्रन्थ नहीं मिल सके है। कवि की उक्ति तथा सभाविनोद के देखने से प्रगट होता है कि कविन चारों ओर मान प्राप्त किया होगा। २ यह हस्तलिखित पुस्तक विचित्र है । उदाहरण के लिए--- १. इसमें अक्षर क्या हैं--प्रत्येक अक्षर एक चित्र है। २. अक्षर बहुत ही मोटे हैं और कुछ तो दोहरे करके लिखे गए हैं। बीच में रंग भर दिया ___ गया है। ३. प्रत्येक पृष्ठ पर ७-८ तरह के रंग पाए जाते हैं। ४. अलग-अलग पंक्तियों में अलग-अलग रंग हैं। ५. विराम चिन्ह भी अलंकृत हैं, जैसे दुहरी पाई में कहीं गेहूँ की बाल के समान और कहीं लाल नामक चिड़िया की प्राकृति के समान चिन्ह बनाए गए हैं। जगह-जगह अलग नमने दिए गए हैं। ६. इस प्रति में १८७ पत्र हैं। अंत में लिखा है 'समापीत ग्रन्थ सुभ' ‘लाल ध्याल यह नाम है, जानत सकल जिहान । अदवत कथा प्रसंग की, या तो अदवृत मान ।।' ७. इस पुस्तक में विराम तथा अक्षरों के बनाने में लाल चिडिया के चित्र का प्रयोग बहुतायत से किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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