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________________ २०५ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन जबै नृप जीतिय चारिहु दंड । उजेंन पुरी मधि प्राय प्रचंड ।। सभा रचि बैठि सिंहासन मध्य । उछाह भयौ हिय में हित सध्य ।। बुलाय तबै दमनी निज सास । जुहार कियौ कहि वेन प्रकास ॥ जहो दमनी तु कृपा तुव पाय । विज किय चारिहु दंड जु प्राय ।। अब जिमि जीत हुं पंचम दंड । उपाव जु मोहि वतावहु चंड ।। तब दमनी नृप को बहु भाँति । दई बहु प्रासिष ही हुलसाति ।। तबै दमनी जु कहै समुझाय । बतावहु पंचम दंड उपाय ।। है समुद्र पार में, एक षमाइच देस । तामे नगरी एक है, पांच नाम तिहि वेस ।। और उसके पांच नाम चंपावती नगरी कहे सीलवती कहिये अही। अमरवती पुष्पावती भोगावती कहिये सही ।। इहि भांति ताके नाम पांचहं तहां पाप पधारिये। जैकर्न नाम सुभप ताको करत राज निहारियै ।। ता नपति के सिदूषचा इक भरयौ रत्ननि कौं लसै। ता माहि विषहर दंड है तिहि लेहु तुम लहि जसे ।। नपति को अग्याहि दै दमनी गई निज धाम को। ५. सुजान विलास-सोमनाथ कृत। प्रन्थ कारण सभा मध्य इक दिन कही, श्री सुजान मुसिक्याइ । सौंमनाथ या ग्रंथ की, भाषा देहु बनाइ ।। हुकुम पाइ ससिनाथ हर, चतुर सुजान विलास । जामैं विक्रम गुन कथ, हैं बत्तीस (३२) प्रकास ।। अथ कथा प्रारंभ लिष्यते गुरु गनपति गोपाल के, पग अरविंदन ध्याइ । रचतु सुजांन विलास कौं, सौंमनाथ सुख पाइ ।। वसति वसुमति मध्य है, धारा नगरी नाम । प्रगट मालुवे देस में, सुष संपति को धाम ।। सुजान विलास एक वृहद् ग्रन्थ है जिसमें बत्तीस प्रकाश हैं। अखैराम की तरह उन्होंने भी प्रत्येक अध्याय के बाद चार पंक्तियां लिखी हैं। चौथी पंक्ति बदलती रहती है। प्रथम प्रकाश के बाद की ये चार पंक्तियां इस प्रकार हैं - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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