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________________ २०२ अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास-सम्बन्धी रामकुल दीपक सौ असुर विहंडवे कों, दुष्ट अरि षडिवे को गरुड़ समाज सों। दानगुन गायवे कों, दिनकरनंद जैसो , अरि गज राजनि कों सिंहन की गाज सों। वदनेस-नंदन सूजान 'अरेराम' कहै , कविन-रिझायवे को भोज भयो लाज सों।। अरामजी की आशीर्वाद देने की प्रणाली देखिए -- चित धरि अष्ट सु अंक वाह बत्तीस गुनीज। दुगुन करौ पुनि ताह त्रगुन पुनि ताह भनीजै ।। अरध अंक कर हीन शेष सों त्रगुन फलावहु । वेद अंक संग धरहु भाग अष्टम चितवावहु ।। ऊपर अंक जो चित रहत, कविता गुन सो तिनहिं धर । आठों सिद्ध वसों तहां, फिर सुजान निज तूव घर ।। इन अंकों को यदि कवि के कहे अनुसार रखते हैं तो इस प्रकार आता है ८४३२४२४३ इसको हल करने से ८ पाता है। २४३४४४८ 'पाठों सिद्ध' बसाने की यह एक बड़ी ही विचित्र प्रणाली है। अब एक वर्णन भी देखिए कोल के पाछे लग्यो नरनाथ, गयो वोह कोल सुवेल वटावें । कंदर अंदर द्वारे के वार, उहाई धस्यौ सु अध्यारी घटावें ॥ हातन सों वृक टोइ नरेस, क्यों पुनि और ई लोक छटावें। ऊंचे प्रवास परे झलकें, ललके मनि मोतीन लाल अटावें ।। पुतलियों की कहानी में मुहूर्त सोधने की बात बार-बार आती है और महूरत सोधिके, पुनि पग धरत भुवाल । ___ जैसे नाइक पूतरी, बोली वचन रसाल ।। जो तू विक्रम की सम आहि । बैठि सिंहासन पं अवगाहि ।। कैसो विक्रम भयो नरेस । अमनि मध्य जानों अमरेस ।। और फिर कहानी शुरू हो जाती है एक समै इक जोगी आयो इत्यादि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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