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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन २. दिल्ली की लूट के कवित्त
लाल दरवाजे पर सूरज सुभट गाजे , ताते ताते वीर हथ्थ प्रायुध दराजे हैं। भाजे पुर लोगन कपाट दरवाजे दीने , परध भुसंडिनु के उद्धत अवाजे हैं । कहूं, सरवाजे छरवाजे लम छर वाजे , बाजे बाजे भाठिन सौं फौरें सिरसाज हैं। जंग के लराजे उमराजे लहि छाजे प्रोट , केते लोट पोट मिले अाजे पर आजे हैं।
(अ)
वरनों कहां लौं भुवलोक में जहां लौं भई , दिल्ली में तहां लौं वानी सूरज-प्रताप ते । मुगल मलूकजादे सेष वे सलूक प्यारे , सैयद पठान अवसांन भूले लापते ।। पाया रोज कामत मलामत से पाक हवे रहेंगे सलामत षुदाई आप आप ते । जार जार रोती क्यों बजार मीरजादी यारौं
जिनका छिपाउ महताब अाफताब ते ।। ३. महाराज रणजीतसिंह और फिरंगी
सुरपुर भवन भरथपुर देवन को, काहे काज आये हो फिरंगी सूरछत्ता में । धरि के नसैनी चढ्यो कुरसी तमूर लियौ , कीये मन मोरे गोरे सुरत चकत्ता में । उठे वृजलाला हंकारि हाथ हाथर लें , हिम्मत करस लोह लंगर लरत्ता में। कहत परसिद्ध महाराज रणजीतसिंह ,
धाय धाय धामें पग आगे ही धरत्ता में ।। 'परसिद्ध' द्वारा लिखे ऐसे अनेक छंद मिले। इन छंदों में निम्नलिखित एक पांचवीं पंक्ति और पाई जाती है
भेजी फोरि पटक पछार खाती धमन सौं , रेजी अंगरेजन की रोवें कलकत्ता में। षेलत फुलता मता जोर जसमत्ता के , पिनारे निदारि कलकत्ता रौर पारेंगे। सुजार मीरपान से पठान जठे तुम्हारे प्रान , लैंन कौं कृपान वान मारेंगे।
(प्रा)
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