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अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास-संबंधी
घमासान लड़ाई
चली चारु बंदूख चारौं दिसा ते। परे वीर ह वीरता की निसा तें ।। कढी खुब समसेर है दामिनी सी। लखी खेत में काल की कामिनि सी।। कटे केतकौं केतकौं धीर तज्ज।
धरा छोड़ि पाजी मुसलमान भज्ज ।' इस यद्ध में तोपखाना छीन लिया गया, और प्राग लग जाने के कारण बहुत से लोग मारे गए । वर्णन को उत्कृष्टता और युद्ध की भयानकता स्थानस्थान पर लक्षित है।
५. वीरता संबंधी कुछ स्फुट छंद- अनेक कवियों के युद्ध सम्बन्धी छंद स्थान-स्थान पर बिखरे हुए पाए गए। इनमें जहां राजाओं की वीरता का वर्णन है वहां उस समय के संघर्षमय वातावरण का भी एक चित्र मिलता है। उदाहरणस्वरूप कुछ छन्द दिए जा रहे हैं
१. कवित्त बत्तीसा असदखां की जंग कौ
उद्धत असदखां युद्ध को निधान जान , लैन उनमान फतेअली ने पठायो हत। कहियौ नवाब सों सलाम में भी हाजर हों, जानत न थोल दर पुस्त इह मेरा कूत । इधर न प्रावो तो महर फुरमावो मुझे , वंदे हम साहि के हमेसां हमें तुम्हें सूत । षातर न आवै तौ सु वाही वंदा बंदगी में , मौला जिसे देहिगा रहैगा षेत मजबूत ।।
१ इस युद्ध में राजा ने मुसलमानों से सहायता ली, किन्तु यह सहायता मिलने पर भी
राजा को हार खानी पड़ी। चारों और बदअमनी फैली और राजा ने राज-काज छोड़ दिया। उसी के परिणामस्वरूप केडल साहब आये । इस झंझट को बढ़ाने वाले मुंशी अम्मूजान की हवेली अभी तक राजगढ़ में मौजद है । इन मुन्शीजी के सम्बन्ध में एक जनोक्ति प्रसिद्ध है
अम्मूजान की बाकरी, चर गई सारी खेत ।
लखजी के पाले परी, खाग्यो खाल समेत ॥ 'लखजी' रामादल के एक प्रसिद्ध वीर थे।
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