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________________ १६२ अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास सम्बन्धी केडल साहब ने अच्छी नीति से काम किया और राजा को तथा रामदल के लोगों को काफी समझाया । अन्त में राज्य का सारा कार्य अपने जिम्मे ले लिया। कवि ने साल के शब्दों का खड़ी बोली में लिखा है साहब का वचन कौन विगार महीप कीयो केहि कारन फौज घनी भरते हो। दूद मच्यो सब देस विधेसब सेस कलेसन क्यों करते हो। प्राप कहौ सो करै हम न्याब, निसंक सुधीरन को धरते हो। बंधु विनय बढ़ाय वा अब जुद्ध कही तुम क्यों करते हो।। वास्तव में शिवदानसिंह बहुत जिद्दी था और इसी कारण उसके भाई-बेटे सब उसके खिलाफ हो गए थे। उसकी 'हठ' के बारे में कवि ने लिखा है मांस अधिक अध्यार चन्द्रमा चार प्रकाशे । उलटि गंग बर बहै कामरितु प्रीति बिनाशे।। तजै गरि अर्धग अचल ध्रुव प्रापन चल्ले ! शंकर फन फंकरें काल हूंकरै उतल्लै ।। मर्जाद छोड रातों रूमददौरे दस दिसान को। छूटे न तदपि कविता वाहिहाहीपशिनदान को १ दत्त के कुछ अन्य कवित्त देखिए जिनो उनकी उग्रता दिखाई देती है-- १. खाट खटूल भई महँगी अति फाल कुदाल तमाम झडंगो। मेख विदूक सिंदूक किंवाड गो दांतरी बांकरी दाम हडंगो ।" हे करुणानिधि कीनोहा यहि सोचे विना नहिं पूरी पड़ेगो ! खाती लुहार भये गुनशी अब मांदरी फांदरी कौन पड़ेगा ।। २. गुजरमल स्वामी भये. भगिनोसिन्दार । करें सफाई शहर की, भष्टा खाय अपार ।। भिटा खाय अपार मूंत मारिन को पावै । भये जात ते भ्रष्ट वित्र तिनको नहिं दीवै ।। कहै दत्त कविराय भये भूतन तें ऊजर । कुपढ़ कलंकी कूर कुटिल ये स्वामी गूजर ।। ३ जाट जुलाहे जुरे दरजी मरजी मैंचक और चमारौ। दीनन की सुधि दीनी बिसार सो ये कहु बार न लेत बुहारी ।। को शिवलाल की बातें कहै दिन रात रहै इनही को अखारौ। ये ते बड़े करुनानिधि को इन पाजिन ने दरबार बिगारौ।। [ शेष पृष्ठ १६३ पर देखिए ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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