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________________ मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन १६१ कम ही मानना चाहिए । सुजानसिंह और प्रतापसिंह से सम्बन्धित ग्रंथ—'सुजान चरित्र' और 'प्रतापरासो' अपेक्षाकृत कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हैं और मत्स्यप्रदेश की ऐतिहासिक काव्य-परम्परा के वास्तविक प्रतीक हैं। इसी प्रकार एक अन्य ऐतिहासिक काव्य ‘यमन विध्वंस प्रकाश' भी इतना उत्कृष्ट नहीं ठहरता । ४. यमन विध्वंस प्रकास- इसके रचयिता हैं उमादत 'दत्त' । ये महाराज शिवदानसिंहजी के समय में थे। इस पुस्तक के पढ़ने से पता लगता है कि एक बार शिवदानसिंहजी ने यह विचार किया कि सभी राजपूतों को उनकी जागोरों से हटा दिया जाय और उन्हें राज्य में मिला कर अपने काबू में कर लिया जाय। मंत्रियों ने ऐसा न करने की बार-बार प्रार्थना को किन्तु राजा न माना। अन्त में सारा मामला पोलिटिकल एजेंट के पास गया और केडल' साहब को भेजा गया। कवि ने लिखा है जाते छाये तुरक तमाम अलवर बीच , ठौर ठौर अधिक अनीति अनुसरते । छूट जाते करम धरम नेम पाचरण , वरन विवेक कीउ धीरज न धरते ।। दत कवि कहै प्रजा पोडित विकल है के , सत्ति होड़ि पातक पयोधि बीच परते । साहब सुजान बली कैडल अजंट वीर , या विधि सपूती मजबूती जो न करते ॥ इसके पहले शिवदानसिंहजी ने कहा था जेते गढ़ जंगी जंगी गव्वर गनीम जेते , जुद्ध करि मारो सबै जेर करि राखौ में। भूमिया जिते क छीन लेहू सब ही की भूमि , छार करि छिन में सुजस अभिलाखों में । दत्त कवि कहै यों कहत सिवदान भूप , संभु की दुहाई बैन सत्य करि भाषौ मैं । छोटे बड़े वीर धीर साहसी जागीरदार , जाति रजपूत नरु खंड में न राखौ मैं ॥3 १ केडल साहब के नाम पर स्थापित अलवर का केडलगंज विख्यात है। २ केडल साहब संवत् १६२७ में अलवर अाए । 3 कहा जाता है यह सारा झगड़ा मुंशी अम्मुजान के कारण हुया । इनके बहकाने पर ही राजा ने ऐसी नीति की घोषणा की। राजा के भाई, बेटे, जागीरदार प्रादि सभी ने उनका विरोध किया और रामदल' नाम से अपना संगठन किया। विशेष वर्णन अन्यत्र देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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