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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन क्या पड़ सोवै उठ अलबेली | प्राज रच्यौ तेरो व्याह नवेली || सब सखियां तोहि दुलहन बनावें । मिलजुल के तोहि बिदा करावें । द्वार बरात खड़ी धन प्यारी । तू सोई सुख नींद अनारी ॥ इस प्रकार के अनेक कवि हुए जिन्होंने इस संसार की ग्रसारता तथा उस संसार को जाने की तैयारी पर जोर दिया । खोज में दास नाम के एक निर्गुरग संत का 'गोपीचन्दजी कौ वैराग' भी मिला १६७ 'करें बंदगी धरणि प्रकास ' 'पीर पंत्र बर सिधि अरु साध' 'नाम कबीर जपै रैदास ' 'दास को वैराग बोध' प्रेममार्गी शाखा के अंतर्गत गुलाम मोहम्मद द्वारा लिखे 'प्रेमरसाल' की बात कही जाती है । यह ग्रन्थ सूफी प्रेममागियों अनुकरण पर है । इन प्रेममार्गी कवि के पिता का नाम ग्रब्दालखां कहा जाता है और इनके आश्रयदाता भरतपुर के महाराज रणधीरसिंह कहे जाते हैं । यह पुस्तक काफी खोज करने पर भी प्राप्त नहीं हो सकी । एक अन्य पुस्तक 'मधुमालती' है जिसके रचयिता चतुर्भुजदास निगम कायस्थ हैं । इस पुस्तक की कई प्रतियां हमें उपलब्ध हुईं जिनमें दो प्रतियां सचित्र भी थीं। यह ग्रंथ मत्स्य प्रांत से अधिक सम्बन्ध नहीं रखता, अतः इसका विशेष विवरण इस स्थान पर उपयुक्त प्रतीत नहीं होता मत्स्य के भक्ति काव्य को देखने पर हमें इस प्रदेश की भक्ति-परम्परा में कुछ विशेष बातें दिखाई देती हैं १. निर्गुण की अपेक्षा मत्स्य प्रदेश में सगुण का अधिक प्रचार रहा। निर्गुरण की प्रवृत्ति हमें चरणदासियों के साहित्य में मिलती है और सिद्धांत रूप से उनका उस ओर झुकाव भी मालूम पड़ता है । व्यवहार में ये लोग भी सगुण को अधिक मानते थे । Jain Education International २ राम और कृष्ण दोनों अवतारों की उपासना हुई । साहित्य की दृष्टि से कृष्ण - साहित्य की रचनाएँ अधिकता से मिलती हैं। वैसे तो हमें विचित्र रामायण जैसे सुन्दर प्रबंध काव्य भी मिले हैं किन्तु राम सम्बन्धी साहित्य की ओर लोग कम आकर्षित हुए । संयोग और वियोग दोनों की दृष्टि से कृष्ण संबंधी साहित्य की ओर कवियों का ध्यान अधिक गया है । राम और कृष्ण संबंधी साहित्य में शृंगार बहुत ही संयत रूप में मिलता है For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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