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________________ १५२ अध्याय ४ - भक्ति-काव्य और गंगा की प्रार्थना इन पंक्तियों में देखिए येरे नर तेरे ये घनेरे उतपात मिटें , दूर कटें रोग असो औसर न आवोगे। जाके नैक नाम ही तैं पापन की कोट पोट , फाट जात नैक ही में असो ध्यान लावोगे। दीनन दयाल प्रतिपाल सब काल ही मैं , सुकवि प्रसाद लोक लोक छवि छावोगे। देवन के देव होय सुर पुर निवास करो, गंमा नाम कहिके अभंगा पद पावोगे । पुस्तक में कवि रामप्रसाद ने अपने आश्रयदाता पद्मसिंह की बहुत प्रशंसा की है मोदभरी रयत बिनोद भरयो देस सब , राजकाज साज में अनंत परवीनो है। सकवि चकोरन कौं चंद सम सोभा देत , दीन अरिविंदन कौं भानु रूप कीनी है। फौजदार परम प्रतापी पदमसिंघ वीर , कीरत प्रताप को निवास जग लीनों है। वैरिन को काल चोर चुगलन कौं ज्वालसम , दीन प्रतिपाल तू विसाल विध कीनी है ।। गंगा-चरित्र में गंगा की महिमा का वर्णन है कि किस प्रकार चित्रगुप्त के भेजे गये यमदूतों को मार कर हटा दिया गया, और गंगा में स्नान करने वाला पापी भी विमान पर चढ़ कर स्वर्ग पहुँचा धाय धाय मार के हटाय जमदूतन कौं। ल्याय के विमांग असमान बीच लै गए ।। यमदूतों ने यमराज के दरबार में जाकर पुकार की। चित्रगुप्त उनकी फरियाद पेश करते हैं जोर कर करत पुकार दरबार बीच , सोर कर सारे जमराज को मुसद्दी है। हद्दी गई रावरी अषंड महि मंडल सौं , रावरौ हुकम ताकी उठे नाहि अद्दी है । कहै परसाद सब करत निसंक पाप , गंगा को गरूर पाय छाय रही मद्दी है। अंसी सुर नद्दी करै बद्दी या तिहारै साथ , देखो महाराज राजगद्दी भई रद्दी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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