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________________ १३६ अध्याय ४ -भक्ति-काव्य ४. मुरली और माला बजन लगी रे देखो बैरनि बसुरिया। कूक सुनत उठी हूक पसुरिया ।। तोरी मुरली देदे मोहि कि कान्हा में समझाऊं तोहि । तू तेरी मुरली देदे मोकं मैं अपनी माला दऊं तो...। बदलन के मिस प्रांऊगी ज्यौ भरम कर ना कोय ।। तोरी मुरली. और मुरली लेने पर बस मुरली ते मतलब मेरो कहा काम अब कान्हा तेरी। मेरो गूंठो हू ना जाय कि देखौ बाट रह्यौ है जोय ।। तोरी मुरली... ५. माता से शिकायत ('खडी वोली के रूप साहित') मैं तो ना जाऊं री मोरी माई मोरी राधे ने बंसी चुराई । हम जमुना पर धेनु चरावत वह जल भरने पाई ।। मुरली मोरी लैगई हरि के विरषभानु की जाई ।। मैं... दो दमरी की माला देगई छल कीनौ छलहाई । श्याम सरबसोने की मुरली सुघर सुनार बनाई ।। भवै कमान तानि श्रवनन लगि मीठी सैन चलाई। तकि कर तीर दियो मोरे तनकै लीनो मार कन्हाई। मैं तो ना जाऊं....... इस प्रकार इस कवि ने अपने भाव-विदग्ध हृदय से कृष्ण लीला के अन्तर्गत अनेक प्रसंगों को लिया है।' ४. बृज विलास-वीरभद्र कृत मोटे अक्षरों में लिखे इस ग्रन्थ के केवल १६ पत्र ही उपलब्ध हो सके अति सुन्दर व्रजराज कुमारा । तात मात के प्राण अधारा ॥ ग्रानद मगन सकल परिवारा। ब्रजवासिन की प्रीति अपारा॥ लीला ललित विनोद रसाला । गाये सुने भाग तिहिं भाला ।। १ इस कवि की कविताओं का जो हस्तलिखित संग्रह श्री महाराज देव अलवर के पुस्तकालय में है उस बारे में श्री महाराजदेव ने स्वयं ही कहा था, और 'प्रिंस अलीबख्श अब मंडावर' कहते हुए इस मुसलमान कवि की कृष्ण भक्ति का परिचय कराया था। उनके पुस्तकालय में इस प्रकार के अनेक हस्तलिखित ग्रंथ मिले जो सम्भवतः समर्पण के पश्चात् वहीं पुस्तकालय में बन्द हो गये और आज तक प्रकाश में नहीं आ सके। २ यह पुस्तक भी माजी अमृतकौर जी के पठनार्थ लिखी गई थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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