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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन ११३ विचारा रात भर बाहर ही पड़ा रहा । अन्त में जब सुबह हुआ तो सारा भेद खुला । वीरभद्र को फागुलीला में माता-पुत्र की लड़ाई देखिए पूत कहै सुनि माता वोरी। लाग्यो भूतक परौ ठगौरी ॥ किन्तु मां अपने असली बेटे को पहचानने में अब भी भूल कर रही है मात पूत मिलि करे लराई । करि गयो कान्ह महा ठगिहाई ।। असली बात थी ते मइया मेरो घर खोयौ। आइक कान्ह अटारी सोयौ ॥ इस प्रकार कृष्ण गोपियों तथा ब्रज बालाओं को 'तका' करते थे। वीरभद्र भी उस सामान्य प्रवृत्ति से नहीं बच सके जिसके अनुसार कृष्ण का चित्रण एक कामुक व्यक्ति के रूप में किया गया है औरे एक तकी वृज बाला, ता पर आसिक नंद के लाला ॥ ताहू की हरि सू रति गाढ़ी, है न सकति प्रांगन में ठाढ़ी। महा बली पति को डर भारी, मिल न सकत पीतम सौं प्यारी ।। किन्तु थोड़े ही दिनों बाद 'प्राइ बन्यौ होरी को प्रोसर' और उसके पश्चात कृष्ण का ऐसा ही एक अन्य छलियापन दिखाया गया है । ___ मत्स्य प्रदेश में इस प्रकार की कृष्ण सम्बन्धी लीलाएँ बहुत कम मिलती हैं, प्रायः पूज्य भाव को ओर अधिक ध्यान दिया गया है। किन्तु यह स्वीकार करना पड़ेगा कि राजघरानों तक में इस प्रकार का साहित्य 'कृष्ण लीला' के नाम से प्रवेश पा जाता था और गोवर्धन के पंडे तथा पुजारियोंका इसमें हाथ रहता था। एक बात पढ़ कर बहुत कुछ समाधान हो जाता है कि कृष्ण तो उस समय केवल बालक थे और 'ग्रासिक' जसे शब्द किसो अन्य अर्थ में ही लिए जावेंगे। फागुलोला में ही लिखा है "इति श्री फागुलीला सम्पूर्ण समाप्तमती माह सुदी १३ गुरुवार संवत् १८८७। पठनार्थ श्री श्री श्री मैयाजी श्री यंमृतकौरि जी योग्य" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.ja
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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