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________________ ११२ अध्याय ३-शृंगार-काव्य इस संग्रह में कुछ हास्यमय लोकगीत भी हैं--- १. रसिया अरे सुनिजारे बालम पीपर तरे की बतिया । मैंने मंगाये गिरी छुहारे लायौ प्यारौ मटर भुनाय । पीपर'..... मैंने मंगाये मथुरा के पेरा प्यारौ लायौ बीरी बंधाय । पीपर...... मोती महल के बीच दरियाई को बंगला। राजा की बेटी ने बाग लगायौ देषन पाया उजीर अऐ तेरी सौं देखन आया उजीर । राजा की बेटी ने महल चिनाया....... राजा की बेटी रसोई तपाई, जैमन..... राजा की बेटी ने सेज बिछाई, पौढन'.. रे दरियाई का बंगला ३. अरे समलिया फेरी दे दे जाइ मैं न भई घर अपने। घर के बलम कौ षाटी महेरी। प्यारे तुमकू मेवा पकवाई..... वीरभद्र कृत 'फागु लीला' में होरी के अवसर पर कृष्ण की एक सरस लीला का वर्णन मिलता है। कृष्ण एक गोप का रूप बना कर उसके घर जा पहुँचे और उसकी अटारी में सो गये । गोप को पहले से ही कुछ संदेह था अतएव इधर से जाते समय कह गया था कि उसकी अनुपस्थिति में घर में कोई व्यक्ति घुसने न पावे । गोप की मां ने जब कृष्ण को गोप के रूप में घर पाया हमा देखा तो उसने समझा गोप आ गया और उसे अन्दर चला जाने दिया। जब थोड़े समय बाद असली गोप आया तो मां ने दरवाजा नहीं खोला क्योंकि वह समझतो थी कि उसका बेटा तो अटारी में सो रहा है यह दूसरा व्यक्ति छलिया कृष्ण ही होगा। असलो गोप के बहुत कुछ कहने पर भी दरवाजा नहीं खोला गया, १ कवि ने इनका संग्रह होरी के अंतर्गत किया है। इस संग्रह में बारहमासा भी है और इस संपूर्ण संग्रह का उद्देश्य भी निम्न दोहे से स्पष्ट है कच्ची दैनि दक्षिणा ही आगे तैं हमेस की जो, ___ माजी श्री अमृत कौरि पक्की कर दीनी सो। यह संग्रह संवत १८६० के लगभग का मालूम होता हैं। इसमें मीरां और सूर के पद भी मिलते हैं, किन्तु जिन पदों का उल्लेख यहां किया गया है वे निश्चय ही भरतपुर के कवियों द्वारा रचित हैं, क्योंकि लक्ष्मण का यह रूप अन्यत्र संभव नहीं। २ यह प्रति महारानी अमृतकौर के पठनार्थ लिखी गई थी। पुस्तक के अंत में लिखा है-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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