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________________ $13 - $14). ३९-४३] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत __इत्यागमवचनानुसारि करी अक्ष कपईक काष्टादिमय वस्तु विषइ स्थापनाचार्य स्थापना कीजइ । पंच परमेष्टि स्थापनानिमित्तु स्थापनाचार्य आगइ मन-वचन-काय रहइं सावधानतानिमित्तु त्रिन्हि पंच परमेष्टि नमस्कार कहियइं । अथवा जिनशासने जि के कार्य कीजई ति सर्वे त्रिन्हि नमस्कार भणनपूर्वक कीजइ । इणि कारणि पुणि त्रिन्हि नमस्कार भणियई । ___14) सकलजिनशासनसारु चतुर्दशपूर्वसमुद्धारु त्रिदिवशिव श्रीवशीकारु श्री पंच परमेष्टि- । नमस्कारु । तिणि कारणि मांगलिक्यनिमित्तु पहिलं तेह नउ अथु संक्षेपिहिं लिखियइ ।। (१) नमो अरहंताणं । नमो सिद्धाणं । नमो आयरियाणं । नमो उवज्झायाणं । नमो लोए सवसाहूणं । एसो पंच नमुक्कारो। सवपावप्पणासणो। मंगलाणं पि सवेसिं पढमं हवइ मंगलं ॥ 'नमो' नमस्कारु हुयउ, कीहं रहई ? 'अरहंताणं' अरहंत रहई। किसा कारण लगी अरहंत ? देव 10 देवेंद्र कृतवंदन नमस्करण सत्कारपूजा अरहइं लहइं, अथवा सिद्धिगमनु अरहई तिणि कारणि अरहंत । तदुक्तं अरहंति वंदणनमंसणाई अरहंति पूयसकारं । सिद्धिगमणं च अरहा अरहंता तेण वुच्चंति ॥ [३९] 'नमो सिद्धाणं ।' सिद्धहं रहइं 'नमो' नमस्कारु हुयउ । किसा कारण लगी सिद्ध कहियई ? अष्ट 15 प्रकार की प्रभूतकालबद्ध सितु कहियइ । सु कर्मु शुक्लध्यानाग्नि करी जेहे ध्मातु दाधडे ति सिद्ध निरुक्ति वसइतउ कहियई । तथा च भणितं-- दीहकालरयं जं तु कम्मं से सियमट्टहा। सियं धंतं ति सिद्धस्स सिद्धत्तमुवजायए । [४०] 'नमो आयरियाणं ।' आचार्य रहइं नमो, नमस्कारु हुयउ। किसा कारण लगी आचार्य कहियइं ? 20 आपणपई पंचविधु आचारु पालई अनेराइं रहइं उपदिसई इति आचार्य कहियइं । यथा नाणंमि दंसणंमि य चरणंमि तवंमि तह य विरियंमि । आयरणं आयारो इय एसो पंचहा भणिओ।। [४१] पंचविहं आयारं आयरमाणा तहा पयासिंता । आयारं दंसित्ता आयरिया तेण वुचंति ॥ [४२] 25 'नमो उवज्झायाणं ।' उपाध्यायहं रहइं नमो, नमस्कारु हुयउ । उपाध्याय किसा कारण लगी कहियइं ? जींह कन्हइ आवी द्वादशांगु शिष्यहं पढियई ति उपाध्याय कहियई । यथा बारसंगो जिणक्खाओ सज्झाओ कहिओ इह । तं उवइसति जम्हा उवज्झाया तेण वुचंति ।। [४३] 'नमो लोए सव्वसाहूणं ।' नमो, नमस्कारु हुयउ । कींहं रहइं ? 'लोए सव्यसाहूणं ।' लोकु 30 मनुष्यलोकु, तेह माहि जि के स्थविरकल्पिकादि भेदि भिन्न सर्व समस्त मुनि छइं ति ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप मोक्षमार्ग साधनइतउ साधु कहियई। अथवा सर्व प्राणिवर्ग विषइ जि सम ति साधु कहियई, तीहं रहइं। तथा च भणितं $13) 2 Bh. काष्टादिकमय। $14) 1 Bh. अरहंतहं। ष. बा० २ 2 आचार्यह। 3 Bh. भेद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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