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२२४ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति
[$618) ८९७-८९८ ___'कांचनागरिषु सहस्रमिति-महाविदेह माहि सीता सीतोदा नाम नदी मध्यभाविया देवकुरु उत्तरकुरु गत पांच पांच द्रह छई ॥ तथा च भणितं
सीया सीओयाणं बहुमज्झे पंच पंच हरयाओ। उत्तरदाहिण दीहा पुन्वावरवित्थडाइ णमो ॥
[८९७] सीता सीतोदा बहुमध्यि उत्तरकुरु माहि सीता बहुमध्यि भाविया पांच द्रह । देवकुरू माहि सीतोदा बहुमध्यि पांच द्रह । तत्र उत्तरकुरु माहि नलिवंतु इसइ नामि छइ गजदंत पर्वतु तेह तणा समीप हूंता नीलवंत द्रहु १, उत्तरकुरुद्रहु २, चंद्रद्रहु ३, ऐरावतद्रहु ४, माल्यवंतद्रहु ५, इसां नामहं प्रसिद्ध पांच द्रह छइं । तथा देवकुरु माहि विद्युत्प्रभाभिधान गजदंतपर्वत समीप हूंता निषधद्रहु १, देवकुरु द्रहु
२, सूरद्रहु ३, सुलसद्रहु ४, विद्युत्प्रभद्रहु ५, इसां नामहं प्रसिद्ध पांच द्रह छई । ए दसइ द्रह उत्तर 10 दक्षिण दीर्घ, पूर्व पश्चिम पृथुल छई। ईहं दसहीं द्रहह हूंता दसे दसे जोयणे पूर्वदिशि पश्चिमदिशि दशदश कांचनगिरि छई। सर्व एक महाविदेह माहि बिसई कांचनागरि छई । पांचहीं महाविदेह तणा मेलिया हूंता सहस्त्र संख्य कांचनगिरि हुयई । तिहां तिहां एक एक चैत्य भावइतउ सहन कांचनगिरिगतु चैत्यहं तणउ हुयइ ॥५॥
'त्रिशतीसाशातिरस्ति कुंडगता' । साठि सय विजय माहि बि बि नदी छई जेहे करी विजय 15 षट्खंड नीपजई । ति सव्वइ मेलित हूंती त्रिन्हि सई वीसां महानदीय तणां नीपजई । तथा-पांच महाविदेह माहि बारवार विजयांतरालगत महानदी छई । बारपंचउ साठि नदी हुयई त्रिन्हि सई वीसां अनइ साठि, त्रिन्हि सई असी, नदी हुयई तीहं तणा प्रपात कुंड त्रिन्हि सई असी हुयई । तिहां एकेक चैत्यभावइतउ त्रिन्हि सई असी चैत्य हुयई ६।
'विंशतिरिह यमकस्थे'ति20
देवकुराए गिरिणो विचित्तक्डो य चित्तकूडो य । दो जमगपव्वयवरा विडंसया उत्तरकुराए ॥
[८९८] विचित्रकूट १ चित्रकूट इसां नामहं करी प्रसिद्ध देवकुरु माहि बि यमकपर्वत छई। उत्तरकुरु माहि पुण वि यमकपर्वत छई । एवं अपर सर्व देवकुरूत्तरकुरु माहि बि बि यमक पर्वत छई सर्व संख्या करी वीस यमक पर्वत छई । तिहां एकैक चैत्यभावइतर वीस चैत्य हुयई।७। 25 ‘सुवृत्तवैताढ्यगासैवे' ति । हैमवत १, हरिवर्ष २, रम्यक ३, ऐरण्यवत ४, नाम जंबूद्वीपगत
चत्तारि युगलिया नां क्षेत्र छई तहिं माहि एक एक भावि करी वृत्ताकार चत्तारि वृत्तवैताट्यपर्वत छई। धातुकीखंड पुष्करवर द्वीपार्द्धगत बि वि हिमवंत बि बि हरिवर्ष बि बि रम्यक बि बि ऐरण्यवत क्षेत्र छई। तिहां पुण एकैक वृत्तवैताढ्य भावि करी सोल वृत्तवैताढ्य छई। चत्तारि जंबूद्वीपगत वृत्तवैताढ्य अनइ
सोल धातुकीखंड पुष्करवर द्वीपगत एवं कारइ वीस वृत्तवैताढ्य पर्वत छई। तिहां एकैक चैत्यभावइ30 तउ वीस चैत्य छई।८।
'पद्मादिषु चेति-पद्मद्रहु १, महापद्मद्रहु २, तिगिच्छिद्रहु ३, केसरीद्रहु ४, महापुंडरीकद्रहु ५, पुंडरीकद्रहु ६, छ द्रह ए । अनइ दस द्रह पूर्विहिं महाविदेह माहि कहिया, सव्वइ सोल द्रह जंबूपद्वी माहि छई । तथा धातुकीखंड पुष्करवर द्वीपार्द्ध माहि बत्रीसबत्रीस द्रह छई, सव्वइ मिलिया असी दह पद्मादिक हयई तिहां एकैक चैत्यभावइतउ पृथिव विकार कमलोपरि वर्तमान असी चैत्य छई॥९॥
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