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२१० षडावश्यकबालावबोधवृत्ति
[$585-587) ८३५-८३८ इह भरहे केइ जिया मिच्छद्दिट्ठीउ भद्दया भव्वा । जे मरिऊणं नवमे वरिसे होहिंति केवलिणो ।
[८३५] इसी परि जि कृष्णतर कृष्णतम मिथ्यात्वकर्म प्रकृति छई तीहं तणी अपेक्षा जि जि शुद्ध शुद्ध । तर शुद्धतम मिथ्यात्व कर्मप्रकृति छई तहिं वर्तमान जि छई जीव तीहं रहई ज्ञानादिगुण शुद्धि प्रकर्ष 5 अशुद्धि अपकर्ष 'स्थान' शब्द तणउ अथु सुलभु छइ।
$585) तत्र मिथ्यात्व गुणस्थानु १, सास्वादनु गुणस्थानु २, मिश्रगुणस्थानु ३, अविरत सम्यग्दृष्टि गणस्थानु ४, देशविरति सम्यग्दृष्टि गणस्थानु ५, प्रमत्तसंयत गणस्थानु ६, अप्रमत्त संयत. गुणस्थानु ७, निवृत्त बादरगुणस्थानु. एह रहई अपूर्वकरणु इस बीजउं नामु पुण कहियइ अपूर्वकरण,
गुणस्थानु ८, अनिवृत्त बादरगुणस्थानु ९, सूक्ष्म संपराय गुणस्थानु १०, उपशांत मोह गुणस्थानु ११ 10 क्षीणमोहगुणस्थानु १२, संयोगिकेवलि गुणस्थानु १३, अयोगिकेवलि गुणस्थानु १४, इति चतुर्दश गुणस्थानक नाम जाणिवां । ईहं तणउं स्वरुपु सविस्तरु कर्मग्रंथहं हूंतउं जाणिवउं।
$586) अथ प्रकृतू जु कहियइ । मिथ्यादृष्टि गुणस्थान तणी अपेक्षा करी सास्वादन गुणस्थानि थोडउ कर्मबंधु सास्वादन गुणस्थान तणी अपेक्षा करी मिश्रगुणस्थानि स्तोकु कर्मबंधु । मिश्रगुणस्थान
णी अपेक्षा करी अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानि अल्पु' कर्मबंधु। अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तणी 16 अपेक्षा करी देशविरति सम्यग्दृष्टि गुणस्थानि स्वल्पु कर्मबंधु हुयइ । सु पुण थोडउ कर्मबंधु अशुभु शुभु पुण पूर्व पूर्व गुणस्थान कन्हा सूक्ष्म संपराय गुणस्थान सीम घणउ घणउ हुयइ । जां सरागसंयमु अरागसंयमु गुणस्थानि वर्तमानु शुभाशुभकर्म सवहीं तणउ क्षउ करइ, बंधु एक सातवेदनीय कर्म तणउ करइ । अनइ खपावइ पुण सातवेदनीय कर्मु तिणि कारणि कहिउं सम्यग्दृष्टि रहई अल्पु कर्म बंधु हुयइ । तथा च भणितं
नाणं पढइ नाणं गुणइ नाणेण कुणइ किच्चाई । नाणी नवं न बंधइ नाणविणीओ हवे तम्हा ॥
[८३६] अथ को एकु इसउं कहइ, जिम नीचा हूंतउ पडिउ थोडउं दूहविवइ प्रायिहिं। ऊंचा हूंतउ पडिउ पुण' घणउं दुहवियइ । तिम अजाणु पापु करतउ थोडउं कर्मु बांधइ सु जाणु घणउं कर्म बांधइ। पाछइ मिथ्यादृष्टि सास्वादन मिश्रगुणस्थान नी अपेक्षा करी सम्यग्दृष्टि गुणस्थानि अल्प कर्म बंधु किम 25 घटइ ? हाथल ज्ञानशुद्धि भावइतउ तेह रहई पापविषयइ प्रवृत्ति इ जि न जोयई। इसउं न कहिवू । जिम ज्ञानशुद्धिवंत जीव बहु' सावध कृष्यादिक कर्म पाखे निर्वहई ति कृष्यादिकु करई नहीं । जि पुण अनिर्वहता हूंता अकर्त्तव्यबुद्धि करी करई ति तथाविह कर्मबंधक न हुयई। जिम भवदत्तसहोदर भावदेवि श्रावकि गृह धर्म सेवा करतेई अकृतगृह धर्म सेवकि हूयउं । जु ज्ञानवंतु तत्त्वबुद्धि करी पापु करइ सु घणउं कर्मु बांधइ । सु पुण परमार्थवृत्ति करी ज्ञानवंतू जुन हवइ जु पापु तत्त्वबुद्धि करी करइ । तदुक्तं
तद्ज्ञानमेव न भवति यस्मिन्नुदिते विभाति रागगणः । तमसः कुतोस्ति शक्तिार्दनकरकरणाग्रतः स्थातुम् ।।
[८३७] 8587) थोडाई विस तणी जिम विसमगति तिम थोडाई कर्म तणी विसमगति । इणि कारणि - भणइ
तंपि हु सप्पडिक्कमणं सप्परियावं सउत्तरगुणं च । 35 खिप्पं उवसामेई वाहि व्व सुसिक्खिओ विज्जो ॥
[८३८]
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2 Bh. omits. SB. omits.
$586) 1 B. drops words upto स्वल्पु। 4 B. omits. 5 B. omits.
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