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$536-538).
श्री तरुणप्रभाचार्यकृत
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उ । तर तीही जि आगम वचनइतर अनेक जीव रूपु सु पाषाणु, न पुनरेकजविरूपु । तउ पाछइ तीही रहई भव्याभव्यता धर्माधर्म विनिर्मित इ जि जाणिवी । " तउ राउ भणइ, "महामात्य ! तई हउं वचनि करी' निरुत्तरु कधि । तथापिहिं प्रत्यक्षदृष्टिहिं जि धर्मफल' करी हउ निःसंदेहु धर्म मान । अनेर प्रकारि मान नही । " इसी परि राइ अनइ मंत्रि रहई नितु धर्म विषइ विवाद हुयइ । तर सु विवाद प्रसिद्धउ हूयउ ।
(536) एकवार सर्व वासर कर्म नीपजावी करी पाक्षिक प्रतिक्रमण करवा कारणि संध्यासमइ आपण आवासि आविउ मंत्री गृहावाध देशावकाशिकु' व्रतु करइ । प्रतिक्रमण विधिवत् सामाचारी करी शुद्ध धर्म ध्यान परायणु पंचपरमो नमस्कार परावर्त्तनु करिया लागउ । तदाकालि राइप्रतीहरु आवी मंत्री आगइ कहर, " महामात्य ! गुरुकार्य करवा ' कारणि राउ तुम्ह रहई तेडइ " तउ मंत्रा प्रतीहार आगइ कहइ, " प्रभाति' सीम मंत्री गृहबाहिरि जाइवा नियम निश्चलचित्तु हूंत 10 रहिसिइ घरिहिं जि । प्रभाति राज' समीप आविसिइ " । इसउं भणी करी पडिहार रहईं मोकलइ । पंचपरमेष्ठि महामंत्र संस्मरण सुधासेकि करी मनुष्यजन्मु कल्पवृक्षु मंत्री तदाकालि विशेष करी सींचइ । अथ पुनरपि पडिहारु आवी करी भणइ, “ मंत्रिन् ! तुम्हारडं कथनुं सांभली करी आज्ञाभंग कारक' जिम तुम्ह ऊपरि राउ रूठउ । वली हउं मोकलिउ, ' मंत्री न आवइ त म आवउ । तरं माहरी सर्वाधिपत्य मुद्रा ले आवि' । इणि कारणि हउं मोकलिउ " । इसउं प्रतीहार तणउं वचनु सांभली करी हसतउ हूंत 15 जिम दुःशील दाली आपणा घर हूंती बाहिरि किजइ तिम राजमुद्रा मोकलइ ।
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(537) मात्र - मुद्रा कौतुकी हूँतउ करि पिहिरी' करी प्रतिहारु हर्षित हूंत आपणा पायक आगइ कहइ, " हउं मंत्री हूयउ । मंत्री मस्तक-मुकुट शनैः शनैः पाउ धारउ " इसउं भगतां भट्टहं परिवृतु घर हूंत प्रतीहारु राजमंदिर ऊपरि चालिउ जेतलइ, तेतलइ दैवजोगइतर कोही एक सुभटहं निःकासि तासिदंडहं कूटी करी पाडिउ । यममंदिर मोकलिउ । जि नाठा सि नाठा, जि केतलइ रहिया प्रतीहार 20 तणा जण हूंता तेहे चैरी पुण मारिया । 'प्रतिहारु मारिउ" इसउ कोलाहलु ऊछलिउ । राजा कोलाहलु सांभली करी क्रोधांध लोचनु' हूंतउ चित्ति चीतवइ ।' प्रतीहारु अम्हारडं काजु करतउ दृष्टि मंत्री मारिउ । एह मंत्रि तणउं मस्तक आपणइ हाथि छेदी करी ऊलालउं दडा भी परि, तउ मू रहई बलवंतपणउं सफलु हुय निवृत्ति' पुण हुयइ ' ।
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(538) इसउं बोलत कोपाटोप संयुक्त गोपति जिहां ति प्रतीहार घातक धातार्त्त कंठागतप्राण', पडिया छई तिहां आविउ । ' महामात्य तणा ए घातक अथवा अनेरा को वैदेशिक सुभट होइसिई " इसउं ध्यायतउ हूँउ राउ दीपदीपिताशावकाशु ति देखी करी बोलावइ । " कउणि तुम्हे ! किस कारणि प्रतीहारु मारिउ ? " तउ पाछइ ति भणइ, “महाराज ! अम्हे वंठ कंठागत प्राण हूया, अम्ह रहई किसउं - पूछ ? देवु दुराचारु पूछि, जिणि अम्हारा स्वामी तणउ मनोरथु विफलु कीधउ । जिणि कारणि धरावास नगराधीश सूरसेन राय तणा अम्हे सेवक, तिणी अम्हे सुमित्र मंत्री रहई मारिवा कारणि मोकलिया हूंता । जिणि कारणि सुमंत्री सुमित्र नामि करी छई, अम्हारा स्वामी रहई पुण' अमित्रु, नितु दंडइ वरसि वरसि ।' त अम्हारा प्रभु तणउ वइरी तेह रहईं सुमित्रु सदा पोषइ । तिणि कारणि अम्हे स्वस्वामी आदेशइतउ सुमित्र तण मार्ग बांधिउ' हूंतउ । किहां हूंतउ एउ प्रतीहारु सिंह तणइ ओडइ जंबुक जिम पडिउ " इसी परि बोलता हूंता ति चियारइ सुभट प्रतीहारघातक पंचता प्राप्त हुया ।
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(535) 5p. वचन मउ । 6p. omits 7 Bh. p. - 18 P. प्रसिद्ध |
8536) 1B.- काशकु । 2 Bh. omits. 3 Bh. प्रभात । 4 P. राजा । 5 Bh. - करक ।
(537) 1 Bh. P. पहिरी । 2 P. इसउं । 3 Bh. पाडियउ | 4 Bh. repeats. 5 Bh. क्रोधांधु-16B. P.
निरृति ।
(538) 1 Bh. कंठगत । 2 Bh. P. के। 3P. सुभ। 4 Bh. omits. 5 P. किसइ कारणि । 6 Bh. पुणि । 7 P वांच्छितु ।
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