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________________ 16 $530-33). ७७४-७७९] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत १८९ 8530) तेतलइ प्रस्तावि राउ पुण सर्वत्र जायतउ हूंतउ तिहां आविउ । तउ पाछइ एक गमा सार सुभट संभार परिवृतु 'मारि मारि' करतउ राउ तेह कन्हइ आवइ । बीजा गमा विमानाधिरूढ देव विद्याधर तेह महात्मा रहई केवलज्ञान महिमा करिवा कारणि तेह कन्हइ आवइं। तउ पाछइ देवनिर्मित हेमकमलोपरि बइठउ देवसेवितु सु चोरु देखी करी राजादिक मारिवा आवता हूंता ति सगलाई सेवा कारिया हूया। तउ पाछइ साधु केसरी सु केसरी', दंत कांति करी चंद्रकांति सुभिक्षु' करतउ हूंतउ । धर्मदेशना करइ । 8531) देशनावसानि राजा पूछइ, “ भगवन् ! किहां सु तुम्हारउं चोर चरित्रु, किहां एउ साधु त्रापिहिं किहां एउ केवलज्ञानु समुदउ"? तउ पाछइ केवली कहइ " राजन्नाजन्मतस्तादृक् पापभाजोप्यभून्मम । श्रीरियं मुनिवाग्लब्धसामायिकमनोलयात् ॥" [७७४] 10 " यद्वर्षकोटितपसामप्यच्छेद्यं तदप्यहो। कर्म निर्मूल्यते चित्तसमत्वेन क्षणादपि ॥" [७७५] इसी परि राउ स्तुति करी पाछउ वली आपणइ नगरि गयउ। अनेक भविकलोक प्रतिबोध करतउ केसरी केवली वसुंधरातलि विहरियउ। पितृघातकरे सर्वजनसंतापकारिणि । चोरेऽपि दत्तनिर्वाणं सेव्यं सामामिकं बुधैः॥ [७७६] इति सामायिक व्रतविषइ केसरि चोर कथा । 8532) अथ देशावकाशिकवतु लिखियइ ॥ दिखते परिमाणं यत्तस्य संक्षेपणं पुनः। दिने रात्रौं च देशावकाशिकव्रतमुच्यते ॥ [७७७] 20 जिम कुणही एक रहई सर्प तण विषु द्वादशयोजन क्षेत्रव्यापकु मंत्रशक्ति करी संकोडी करी अंगुलप्रमाणादिकि अल्पक्षेत्रि आणिवा' नी शक्ति मंत्रबलइतउ हुयइ अथवा शरीरव्यापकुविषु अंगुलीमात्र व्यापकु करइ अथवा डंकदेशगतु करइ तिम जु पूर्विहिं दिग्व्रतु योजनशतादि प्रमाणि चउहुं दिशि ऊर्द्ध योजनद्वयादि प्रमाणि अधो योजनैकादि प्रमाणि कधि छई तेह तणउं मुहूर्तादिकालावधि करी संकोचनु दिन समइ अनइ रात्रि समइ कीजइ सु देशावकाशिकु अथवा सर्वव्रत संक्षेपु करणरूपु देशावकाशिकु ।25 यदुक्तं एग मुहुत्तं दिवसं राई पंचाहमेव पक्वं वा । वयमिह धारेइ ददं जावइयं उच्छहे कालं ॥ [७७८] $533) अथ अतिचार प्रतिक्रमण करिवा कारणि भणइ ॥ आणवणे १ पेसवणे २ सद्दे ३ रूवे य ४ पुग्गलक्खेवे ५। देसावगासियंमी बीए सिक्खावए निंदे॥ [७७९] __30 8530) 1. P. repeats परि। 2. Bh. omits 3. P. repeats करी चंद्रकांति। 4. P. सुभक्षु $531) 1 Bh. P. विहरिउ । 8532) 1 Bh. आणवा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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