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श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत चीतवतउ हूंतउ सु चोरु श्रांतु कांतार-सरोवरि जलु पियइ। स्नानु पुण करइ। तउ पाछइ श्रमरहितु हूंतउ सरोवर पालिस्थित चूत तरु ऊपरि चडिउ फल खाई तृप्तउ हूयउ हूंतउ मन माहि चीतवइ । 'ह हा मू रहई किम आज नउ दिवसु चोरी पाखइ जाइसिइ' ? इस तिणि चोरि चीतवतइ हूंतइ एकु को योगींद्रु मंत्रसिद्धपादुकु आकाश हूंतउ सरोवर तीरि ऊतरिउ। पादुका तीरि मूंकी उरहउ परहउ जोई10 करी भूमि लागता पगहं करी सरोवर माहि पइठउ । तदाकालि तिणि चोरि वृक्ष ऊपरि बइठइ थिकई12 इसउं 5 चीतविउ, 'एइ योगी रहई गगन गमनविषइ ए पादुका ईजि कारणु, नहीं त किम ईहं पारवइ भूमिगतिहिं जि हीडइ ! तिणि कारणि ए पादुका चोरउं, दिन सफलु करउं ।'
8526) इसउं चीतवी चूत हूंतउ ऊतरी पादुका पाए' पहिरी गगनिगमनु करइ । तउ पाछइ दिनु किणिहिं वनगहनि रही करी रातिसमइ ति पादुका पादे पहिरी आपणइ धरि गयउ। जनक सिंहदत्तश्रेष्ठि आगइ कहइ; “राउ वीनवी करी तई हउं नगर हूंतउ कढावियउ"। इसउं भणी करी तां दंडे करी 10 मारइ, जां मरइ । मूयउ बापु मूकी करी जि जि महर्द्धिक घर तीहं तीहं हूंत सारु सारु अपहरइ । इसी परि त्रिन्ही पहर रात्रि सीम स्वेच्छाचारि तेह पुर माहि विचरइ। रात्रि तणइ चउथइ पहरि पुनरपि दुर्गमारण्यमंडनि तिणिहि जि सरोवरि गयउ। इसी परि राति राति सु चोरु तेऊ जु नगरु विविध प्रकारहं करी लूटइ। पापबुद्धि हूंतउ साधु सती मुख्यलोक' रहई संतावइ । तउ पाछइ जिम जमागमु भयंकरु हुयइ तिम तिणि नगरि निसागमु हुयइ । तेह नउं स्वरूपु नगराधिपति जाणी करी तलारु बोलावइ। तलारु15 विलक्ष्यवदनु हूंतउ अधोमुख होई करी वीनवइ । “महाराज! जे भमि गोचरु चोरु हयइ तउ पाडि हुयइ । एउ खेचरु कोइ चोरु माहरइ पाडि नहीं" ।
527) तउ पाछइ राउ कोपाग्नितापसंतप्तु आपणउं मुखु, दुक्खितलोक दर्शनि करी हुई छइ कृपा तेह लगी, नेत्रहं हूंतां नीसरइ छइ जि अस्रुजल तीहं करी, शीतलु करइ । “तपोधनहं तणां जि छई तपोधर्म, शीलवती जि छई युवती तीहं तणा छई शीलधर्म, तीहं तणइ प्रभावि 30 स चोरु म रहई दृष्टिगोचरु होइजिउ"। इसउं भणी करी अल्पपरिवारु राउ आपणपई परी माहि फिरी चोरु जोयइ । जि के देवकुल, जि के आश्रमपद, जि के जनसमवायपद, जि के वेश्यापाटक, जि के कलालपाटक तिहां सगले जोइउ जइ न लाधउतउ राउ नगर बाहिरि नीसरिउ । वापी कूप तडागारामादि स्थानि फिरिउ । जउ तिहाई न लाधो तउ राउ नगर बाहिरि' वन माहि गयउ । तिहां दिव्यु गंधु उपलभी करी गंधानुसारि जायतउ हूंतउ वनबहुमध्यि चंडिका भुवनु देखइ। तेह माहि 25 चंडिकामूर्ति चंपकादि दिव्य कुसुम संभार' संपूजित देखइ । धूपोक्षेपु करतउ हूंतउ पूजारउ राय कन्हेइ आवियउ । राइ तेह तणां दिव्य वस्त्र देखी करी विस्मयापन्नि हूंतइ पूछिउ, “आजु किसइ उच्छवि' किसइ पर्वि, किणि भावियइ इसी पूजा करावी छइ! इसी विभूषा देवी रहई करावी छइ ? तू रहइं देवदूष्यावतार तार वस्त्र किणि दीधां?” इसइ राइ पूछतइ हूंतइ पूजाकारकु भणइ--
8528) “महाराज ! मू दुक्खित रहइं देवी चंडिका तूठी। प्रभाति देवीपूजा निमित्तु आवउं 30 अनइ देवी तणां पादहं आगइ वर्तमान स्वर्णरत्नसंतान लहउं । तिणि कारणि बिहुँ काले देवी रहई पूजउं । देवी प्रभावि धनद धन जयकारकु धनु लहउं”। तउ राजा चित्ति चीतवइ, 'निश्चइस रात्रि समइ देवीपूजा निमित्तु चोरु ईहां आवइ । देवी आगइ सुवर्ण' रत्न मूकइ ' इसी परि चोरु संचारु तिहां
852517 P.काई। 8. P. omits. 9 P. कोइ। 10 B. Bh. omit. 11 P. बइठउ। 12 P. थकउ। 13 P. adds हि। 14 P. भमि-।
8526) 1 Bh. पादे। 2 P. गगन विषइ। 3 P. सरोवरवरि। 4 P. सतीहं मनुष्य। 5 P. विलक्ष
$527) 1 Bh.-पटक । 2. Bh. लाधो। 3. B. P. omit. 4. Bh. omits. 5. Bh. गइउ ! 6. B.P. | omit. गंधू उपलभी करी। 7. P. omits. 8. P. राय । 9. P. उत्सवि । 10. Bh. पूज। 11. B. पूजा।।
$528) 1 P. Equýt i B. Fa on the recto and qoof on the verso,
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