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पडावल्यकबालाबोधवृत्ति
$511-514).७३६-७५ $511) अथ दवदान।
गोवाई जिट्ठाइसु नवहरियाणं पवद्धण निमित्तं । जुन्नतणाण य दहणं दावग्गीदाणु तं बिंती ॥
[७४८] इति दवदानं १३॥ 8512) अथ सर-दह-तडाग सोसकर्मु॥
चणगाइ गोहुमाण य वाहीमाईण सिंचणनिमित्तं । दह-सर-पवहुलिंचण अरहट्टाईहिं जंतेहिं ॥
[७४९] इति सर-दह तडाग सोसकर्मु १४॥ $513) अथ असती पोस कर्मु ।
कुललाइ-वेस-कुकुर-विराल-सुथमाइ पोसणं जं च । जोणी पोसं च तहा तुरगुट्ठीणं च वित्तिकए॥
[७५०] इति असती पोषकर्मु १५॥
पन्नरसंगाराइं कम्मादाणाई हुंति एयाई। विसयविभागो किंची सुयाणुसारेण इह लिहिओ ॥
[७५१] . सूत्र माहि एवं खु' शब्द छइ सु छेहि संबंधिवउ । तउ पाछइ इसउ अर्थ एवं प्रकार अनेराई जि निकृष्ट निर्दय कर्म छई गुप्तिपाल तलार प्रमुख । 'खु' किसउ अर्थ निश्चयसउं सुश्रावकु अनेरइ प्रकार आजिविका संभवि हूंतइ विवर्जइ।
8514) अत्र भोगइतउ अनइ' कर्मइतउ भोगोपभोग परिमाणकरण व्रत विषइ धर्म तणी कथा लिखिय॥
कृती मितीकृताहारः सप्तमव्रत लीलया। मुच्यते सञ्चितेनापि कर्मरोगेण धर्मवत् ॥
[७५२] तथाहि
श्रीनिवासकमलु श्रीकमलु इसइ नामि नगरू । दूरीकृताऽसत्यु सत्यु इसइ नामि राजा। जेह नउ खड्ग जिसउ शत्रु कालरात्रि तणउ दर्पणु हुयइ इसउ लोके दीसइ । सु पुण गुणवंतु कलावंतु लक्ष्मीवंतु भोगी __त्यागी जिम स्वर्गि शकु राज्यु करइ तिम' राज्यु करइ। 25 अनेरइ दिवसि राजसभा माहि नैमित्तिकु एकु कहइ । “ महाराज! इणि वरसि इसऊ ग्रहयोग
दुष्टु पडिउ छइ, जिसइ बारह वरस दुर्भिक्षु पडिसिइ।" राजा प्रधानह सामुहउं जोयइ । प्रधान भणई, "महाराज! एह ना वचन नउ संवादु आगइ अनेकि वार अम्ह रहई हूयउ"तउ पाछइ तिणि नैमित्तिक वचनि करी, जिम वाति करी तृणु धूजइ तिम, राजेंद्र नउं मनु धूजिउं । तउ पाछइ राजेंद्रि तृण कण संग्रह कीधउ। 30 तथा कण तृण संग्रहण व्यग्रि समाय जनि हूयइ हूंतइ तदाकालि का एक दुर्भिक्ष्य वर्णिका
आवी । तउ राउ1 चीतवइ, हा ! निर्धान्य निर्धन जन किहां जाइसिई ! किम थाइसिई 12513 ? इसी चिंता करी संतप्तचित्त राजेंद्र रहई वर्त्तता इंता प्रमोदनिमित्त आसाढ मास नई पहिले जि पक्षि दिवस समड
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8514) 1 P. अनेरइ। 2 P. धर्मवित्। 3 Bn.-रातु। 4 P. omits तिम राज्यु करह। 5 Bh. omits. .... 6 P. वरिसी। 7 Bh. माहाराज। 8 Bh. नैमितिकि-19P. omits-कालि । 10 P. दुर्भिक्षपर्णिका। 11 Bh. adds.
मनि । 12P. थाइसि । 13 P. मह।
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