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१६८ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति
[$484-485 ). ६४१-६४३ नीसरिउ राहुग्रस्तु हुयइ, तिम हउं अल्पधनपंक हूंतउ' कथमपिहिं नीसरिउ, प्राज्यराज्य महापंक माहि पडिउ'। भद्रासनि बइसाली करी महामात्य राज्याभिषेक करावई। विद्यापति भणइ, “ मूं रहई
हि कार्यु नहीं” प्रधान कहई, “इम किम हुयइ! देवता तू रहई राज्यु दियइ"। विद्यापति भणइ, “ तथापिहिं मू राज्यि कार्यु नहीं"। इसीपरि वार वार राज्याभिषेक निषेधु करतइ हूंतइ आकाश5 भाषा ऊछली, " अजी! भोगफलु प्रभूतु कर्मु छइ तिणि काराण राज्यलक्ष्मी पाणिपीडनु करि” इसउं निज भाग्यदेवता वचनु सांभली करी सिंहासनि जिनेंद्रप्रतिमा बइसाली करी तेह नइ पादपीठि आपणपई बइसी करी जिनप्रतिमा रहई राज्याभिषेक तणइ व्याजि आपणपा रहई त्रिभुवनाधिपत्यनिमित्तु अभिसींचावइ । जेतलडं अंगीकरि छइ तेतलडं आपणइ लेखइ करी बीजउं समस्तु वस्तु शस्त हस्ति
तुरंगम' भांडागारादिकु जिन नामांकितु करइ। सदा तीर्थयात्रादि प्रभावना करावइ । देवगृह करा10 वइ । जिनबिंब भरावइ। अभयघोषणा अमारिघोषणा करावइ । लोक कन्हा करु न लियई। कहइ,
"अहो लोकउ जु राजु भागु आवइ सु धनु धर्मिहिं जि वेचउ"। तउ पाछइ जिनधर्म नइ एकातपत्रि राज्यि प्रवर्त्तइ" हूंतइ ‘मार12 इसा अक्षर कंदर्पनाम मूंकी करी अनेरइ थानकि, न केवलं जीवविषइ कोइ13 न कहई, अजीव छइं जि चूत माहिसारि तीही आगइ को न कहई मारि । जिम जिम विद्यापति
राजा धनु वेचइ तिम तिम तेह नी भाग्यदेवता राजमंदिरि धनु वरसइ । अनेरइ दिनि समीपगत राजेंद्र 15 मिली करी तेह ना राज्य रहई लेवा आविया। विद्यापति धर्म मूकी बीजी वात जाणइ नहीं। जिनाधिष्ठा
यक छई यक्ष तेहे तीहं रहई रोग ऊपजावी करी नासविया । विद्वेषियां तणउं विकटु कटकु देखी करी विद्यापति चित्ति चीतवइ ।
5484) " अहो! शक-विक्रमवंत शत्रु राजेंद्र छई, तेई धर्म तणइ प्रभावि भाजी गया। मूं रहई अल्प परिग्रहता देखी करी महापरिग्रह शत्रुलोक जिणिवा कारणि आपणा सेवक' भणी धर्मि 20 निश्चइं साहाय्यु कीध।
तदहं यद्यसु सेवे, त्यक्त्वाशेषपरिग्रहः । तदन्तरायभङ्गेपि, भवत्ययमुपक्रमः॥
[६४१] इसउं चीतवी करी शृंगारसुंदरी संभवु शृंगारसेनु सूनु राज्यि बइसाली करी संजमसूरि समापि संजमु ले करी कल्याणमउ आपणउ आत्मा तपोग्नि तापि सूझवी करी विद्यापति राजऋषि देवलोकि 25 गयउ । मनुष्य देव भव पंचकि हूयइ हूंतइ मुक्ति गयउ।।
विद्यापतिकृतपरिग्रहमानयामं ।
श्रुत्वा बुधा भवत सम्पदि निस्पृहा भोः। येन स्वयंवरवधः शिवसम्पदेषा __ जातस्पृहा क्षिपति वः स्रजमाशु कण्ठे ॥
[६४२] इति परिग्रह परिमाण करण व्रतफलविषइ विद्यापति राजऋषि कथा समाप्ता। $485) अथ त्रिन्हि गुणव्रत कहियई।
तत्र प्रथम गुणव्रत प्रतिक्रमणा निमित्तु भणइ
गमणस्स य परिमाणे दिसासु उट्ठे अहे य तिरियं च । बुद्रि-सइ-अंतरद्धा पढमंमि गुणव्वए निंदे ॥
[६४३] गमनु भणियइ गति तेह तणइ परिमाणि एतलां जोयण जाइसु इसीपरि छोद प्रमाणि अंगी. करिइ हूंतइ । किसा नइ विषइ ?
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8483) 7 P.हंतउ। 8 B. P. वस्तु। 9 P.तुरंग। 10 Bh. राज। 11 Bh. later corrected to
प्रवर्ततइ । P. प्रवर्तिइ। 12 Bh. मारि। 13 Bh. को। 8484) 1 P. सेव । 2 P. तणी । 3 P. omits.
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