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________________ १६४ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$472-474) ६३० 5472) घरि आवी स्नानु करी विधिवत् देवपूजा करइ । सुपात्रहं रहइं दानु प्रवर्तावइ । यथेच्छा कामसुख भोगवइ । तउ पाछइ विवेकवंतु कांत देखी करी नंदा सानंदा हूंती भणइ, "शील सलिल परिसिक्त हूंती जिनभक्ति कल्पलता आजु मू रहई सफल हुई । कांत जु मई तउं विवेकवंतु दीठउ ।” नागिलु भणइ, "प्रियतमि! जु मई व्यसनु मेल्ही करी विवेकु अंगीकरिउ' तेह अर्थविषइ गुरु नउ आदेशु कारणु । यत उक्तं मनो न निश्चलं तावद्यावत्तत्त्वं न विंदति । विदिते तु परे तत्त्वे मनो नौकूपकाकवत् ॥ [६३०] तेह दिवस हूंती तीहं रहई एकचित्तता हुई। नागिल नंदा बिहुँ आधिरहितहं समाधिसहितहं समान धर्म-रूप-कला-यौवनबंतहं तीहं तणी कायकांति अतिशय प्राप्त हुई। 10 4 73) अनेरइ दिनि किणिहिं पर्वि नंदा पीहरि गई' । नागिलु आपणा घर तणी सातमी भुइं नइ मणिकुट्टिमि देवपल्यंकोपमान शयनीय उपरि सूतउ चंद्रबिंबि दत्तलोचनु वर्त्तइ। कई एक विद्याधरी प्रिय विरहिणी आकाशमार्गि जायती नागिल रहई देखी करी सकाम हुई हूंती नागिल आगइ आवी करी भणइ । “कामाग्नि-संतप्त-गात्र हूंती हर्ड अहो महापुरुष । तू रहई शरणई आवी। स्वामिन् ! स्वांगसंग सुधातरंगरंगकेलीसुख भू रहई करावि । हडं पुण विद्याधरशिरोमाण छइ हंसु विद्याधरु तेह नी गेहिनी, 15 तई दीठइ तेह हूंतउ माहरउ मनु ऊबीठउं हूयउं। चंद्र नाम खेचरेश्वर नी हउं दीकिरी नामि करी आगइ लीलावती, तई आदरी तउ हउं कर्मिहिं करी लीलावती होइसु । अथ मू रहई जइ किमइ नहीं अंगीकरइ तउ त नही हुयइ अथवा हर्ड नहीं हुई। तेतीवार धर्मज्ञ तउं किस स्त्रीहत्यापातकी10 यह ? पति तणी विद्या पिता तणी विद्या हउं सव्वा ति जाणउं ति विद्या तू रहई देस, पति अनइ पिता तू रहइं साध्य करिसु। तिणि कारणि तुंउं मू रहई अंगीकरि। माहरवचनु अन्यथा म करिसि"। 20 जुस भणी करी तेह न। पाद आपणइ मस्तकि धरिवा कारणि जेतलइ धाई तेतलइ 'परस्त्री संस्पर्श माहरां पगहीं रहई म हुउ' इणि कारणि नागिलि जिम दहन हूंता दाझता पाछा कीजइ तिम कीधा । 8474) तउ पाछइ स विद्याधरी कोपवशगत हूंती आकाशगत अतीवाऽऽरक्तलोचन थिकी अग्निवर्ण लोहगोलु अतिविलोलु विकुर्वी करी नागिल तणा मस्तक ऊपरि मूकइ । “ दाधउ रे दाधउ रे" इसी परि गगनगत हूंती वाहवइ । तेह रहइं बीहवइ । तउ पाछइ नागिलु पंचपरमेष्ठि नमस्कारु मन माहि समरद । नमस्कार नइ प्रभावि लोहगोलउ विलइ गयउ । स विद्याधरी पराजित हूंती लाजी करी अदृश्य हुई। नागिलु हर्ष रोमांच कंचुकित गात्रु हूयउ । “ तुम्ह पाखइ पितृमंदिरिहिं मू रहई राति नहीं।" इसउं भणतीहंती नंदा नइ रूपि नंदा नइ स्वरि स खेचरी गृहद्वारि आवी । परिवार कन्हा द्वार ऊघडावई' नाशिल स्वरि करी नंदा ओलखतू हूंतउ खेचरी कपटाशंका' करी संकीर्णस्थानस्थु होई तउ नंदा बोलावइ । “हे अरविंदाक्षि, दाक्षिण्यनिधे यदि त्वं नंदासि तदा मामेहि । अथाऽन्या कापि तदा धर्मनृप30 प्रभावाद्भग्नगतिर्भव।" इसा कथन कथनानंतरु धर्म नइ प्रभावि स खेचरी स्तंभितगति हूंती तेह नइ चरित्रि करी विस्मयापन्न हूंती विद्याधरी आगइ ऊभी रही। नागिलु कपटांतराऽऽशंकी शीलरक्षा कारणि आपहे व्रतु लियइ । सासनदेवतादत्तुं वेसु धरतउ हूंतउ गृहस्थितु जु छइ यक्षदीपु तेह आगइ इK कहइ । "अहो आराध्य ! नंदा नइ लोभि मई तउं गृहदीपतां पमाडिउ' हूंतउ। सांप्रतु हर्ष कृतकृत्यु हूयउ। 8472) 1 P. अंगीकरिवउ। 2 P. आदेसु। 3 P. रहितई । $473) 1 Bh. गयई। 2 P. के। 3 P. एकि। 4 P. -विहरिणि। 5 P. नागिलइ। 6 P. ormits-गात्र। 7 Bh. शरण। 8 P. -सुधा-रंग-केवली-1 9 P. omits. 10 B. Bh. add नहीं। 11 P. सर्व। 12 Bh. इ। 13 Bh. तउं । 6474) 1 P. भणीति। 2 Bh. ऊघाडावइ। 3 P. omits कपटा-। 4 B. P. -शंका! 5P. सासना-। 6 Bh. इसउ। 7 P. पांडिउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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