SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ $470-471) ६२८-६२९ ] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत १६३ निरञ्जनं दशोन्मुक्तं निःस्नेहव्ययमन्वहम् । धत्ते विवेकं' दीपं यः परिणेता ममाऽस्तु सः॥ [६२८] इसउं तेह नउं वचनु सांभली करी पिता चिंताकुलु हूयउ । तेह रहइं वरु आवइ तेह तेह आगइ • निरंजनं ' इत्यादि श्लोकु पढइ । को एक श्लोकु परमार्थवृत्ति करी परीछा नहीं। बाह्यार्थवृत्ति करी परीछइ। 8470) तिणिहि जि नगरि नागिलु नामि जुयारी' एकु छइ । । सु पुणि रूपि करी जिसउ कंदर्प हुयइ तिसउ छइ । तिणि नागिलि अनेरइ दिनि अनेकि लंघन करी विरूपाख्यु यक्षु आराधिउ' हूंतउ' प्रत्यक्षु हूयउ कहइ । “अहो वरु मागि" । तिणि भणिउं, " जउ तउं मू रहई तूठउ तउ जिस दीपु नंदा कहइ छइ तिसउ दीपु त माहरइ घरि था" यक्षि कहिलं “होइसु"। तउ पाछइ लक्ष्मणश्रेष्ठि तणइ घरि जाई करी नंदा मागइ । श्रष्ठि भणइ, “नंदा जिसउदीपु भणइ तिसउदापु जउ थाहारइ घार हुयइ तउ'10 नंदा लहइ"। तिणि भणिउ, “आवी माहरइ घरि जोयउ"। श्रेष्ठि जोयइ तउ तिमहीं जि परि दीपु देखा। नंदा तेह रहइं परिणावइ । यक्षप्रभावि दरिद्रताभावु नाठउ । लक्ष्मी प्रभूत आवी । तथापि नंदा तिसइ दीपादि दर्शनाचार्यहि करी निरानंदा ई जि हुई । सु पुण नागिलु स तिसी देवतासमानरूप नायिका लहिऊ करी द्यूतव्यसन तणी निवृत्ति न करइं। जिम जिम धनु हारइ तिम तिम नंदास्नेह लगी लक्ष्मणुश्रष्ठि पूरइ । जदपिहिं धनु हारी बाहिरि अपर पणांगना रमी घरि मउडउ आवइ, तथापि हिं नंदा सानंद 15 थकी तेह रहई परचर्या करइ । तउ पाछइ नागिलु आपणइ मनि चींतवइ । 'हउं एह रहई प्रिउ नहीं। जु एवडेई अपराधि मू ऊपरि क्रोध न करई। 471) अनेरइ दिवसि तिणि नागिलि घणउं धनु हारिउं । कितवहं कन्हा नाठउ वन माहि पइठउ । तिहां ज्ञानवंतु मुनि धर्मध्यानि वर्तमानु तिणि दीठउ। वांदी करी प्रस्तावि पूछिउं। “भगवन् माहरी भार्या सुभसद्भावइ हूंती मूं रहई चित्ति काई न करई"। इसइ पूछिइ हूंतई महात्मा मनि चीतवइ, 20 'योग्यु छइ, एउ प्रतिबुझिसिइ। तिणि कारणि महामुनि कहइ । “स विवेकिनी कांतु' पुणि विवेकवंतु परिणिवा कारण विवेकु निरंजनादिगुण तिणि कहिउ । त उ विवेकु दीपु जु धरइ सु मू रहई वरइ इसउ तेह नउ अभिप्राउ हूंतउ । सु अभिप्राय को जाणइ नहीं। तई दीपु निरंजनादिगुणु दिखाली करी परिणी । यतःनिगद्यतेऽञ्जनं माया नवतत्त्वच्छित्तिर्दशा। 25 स्नेहव्ययः प्रेमभङ्गः कंपः सम्यक्त्वखण्डनम् ॥ [६२९] तेहे मायादिके दोष विवर्जितु विवेकु दीपु जु धरइ सु मू रहई वरइ। तिणि पुण जेतीवार तिसउ दीपु यक्ष विरचितु दीठउ, तेतीवार मौनवंत हूंती तई परिणी । जेतलइ सती तेतलइ तू रहई अपराधवंतही विषइ न रूसई । जेतलई तउं अविवेकी एतलइ तू ऊपरि न तूसई । तू रहई चित्तिहिं न करइं ।” महासती नऊ सु समाचारु साधु भणितु अनइ विवेकु सांभली करी प्रतिबूझइ । महात्मा कन्हइ जिसउ विवेकु पूर्विहिं 30 कहिउ तिसउ विवेकु अनइ स्वदारसंतोषव्रतु तदाकालि नागिलि अंगीकरि । 4 P. विवेकी। 5P. कोइ। 8470) 1 Bh. जूयारी। 2 P. विरूपाक्षु। 3 P. आधारिउ। 4 P. तउ। 5 B. जिसुउ (-उ appears to have been cancelled ). 6 P. तुं। 7 P. भणिउ। 8 Bh. थाहरइ । P. किमई ताहरइ । 9 P. adds न। 10 P. यक्षि-1 11 B. आश्चर्यहिं । 12 P. प्रिय। 13 Bh. रोषु । 8471) 1 P. कांति। 2 P. पुण। 3 B. drops words between दीपु......दीपु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy