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________________ $461-463 ). ६१५-६१६] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत १५९ पतितं विस्मृतं नष्टं स्थितं स्थापितमाहितम् । अदत्तं नाददीत स्वं परकीयं कचित्सुधीः ॥ ___ईहं स्तेनाहृतादिकहं कीजतां हूंतां जु कर्म बांधउ सु · देवसिउं, दिवसकृतु सव्वं सगल्लू 'पडिक्कमे पडिक्कमिडं। 8461) अत्र अदत्तादान परिहारविषइ लक्ष्मीपुंज कथा लिखियइ । अदत्तादानविरतिव्रतनिश्चलनिश्चयः ।। लक्ष्मीपुंज इवानोति सर्वः सर्वमचिंतितम् ।। [६१६] तथाहि हस्तिपुरु नामि पुरु । महादारिद्रमांदरु सुधG इसइ नामि धर्मकर्म कर्मठु श्रेष्ठि एक हूंतउ। सु कउडा वडइ वस्तु लेइ करी वेचइ । केई एकि कउडां उपार्जतउ हूंतउ कालु अतिक्रमावइ । धन्या नामि 10 तेह नी गेहिनी। तिणि अनेरइ दिनि रात्रि स्वप्नु लाधउं। दिव्यालंकार सार शृंगार तारछइ श्रीदेवी जिनेंद्रपूजा करती पद्महद माहि बइठी, जाणइ हउं देखउं छउं । ते ताहीं जि वार जागी हूंती हर्ष रोमांचकुंचकित गात्र ऊठी करी प्रियतम आगइ आवी स्वप्नु कहइ। तिणि कहिउं, “प्रियतमि ! श्रीमंतु धीमंतु धर्मवंतु तू रहई पुत्र होसिइ । तिणिहिं जि दिणि तेह ना प्रभावइतउ तेह सुधर्म श्रेष्ठि रहई बि गुणउ लाभु हूयउ। लाभोदय कर्बोदय लगी सु श्रेष्ठि सुखले सहं रहई तेह दिन लगी पाहुणउ हूयउ । धन्या रहइं16 सुभकांति सौभाग्यादिकहं गुणहं करी सु गर्भु भाग्यवंतु सुधर्म संभाविउ । आग्रहायणीय दिणि सु सुधर्मश्रेष्ठि धनचिंतार्नु पाद नइ अंगूठइ करी घर नी भुई खरवलतउ हूंतउ कल्याण मणि माणिक्य पूर्ण बिलु देखी निधिलाभइतउ आनंदमंदिर हूयउं। तउ पाछइ जिसुं' इंद्र नउं विमानु हुयइ तिसर मंदिरु कराविडं। रूपवंत सालंकारु सशृंगारु दास दासिका परिवारु तिम हिं तेह नइ घरि सांपडिउ । आग्रहायणीय महोत्सवु सविस्तरु कराविउ। तेह नइ मणि सुवणि दानि करी जि दातारः हूंता तेई 20 याचक हूया। जिम जले" नीसरते ई1 कूपु भरिउ ई जि दीसइ तिम रत्ने काढीते ई सु बिलु तिम ही जि भरिउ दीसइ। तिणि विभूति करी हृष्ट संपूर्ण दोहदकालि धन्या सुपुत्रु प्रसवइ । देवहीं रहई विस्मयकारकु दानु दियतइ हूंतइ श्रेष्ठ पुत्र तणउ जन्ममहोत्सवु कराविउ । इणि आवियइ अम्हारइ घरि लक्ष्मी तणा पुंज हूया। तिणि कारणि अम्हारा पुत्र रहई यथार्थं लक्ष्मीपुंज इस नामु हुयउ। इसी परि भणी करी वडइ विस्तरि लक्ष्मीपुंज नामकरणु पितरे कीधउं । मनोवांछित वस्त्रालंकारादिकहर करी सु बालकु जन्म लगी सुभभागी हूयउ । कलावंत जिम सकल कलाकलापवंतु हूयउ। 8462) आठ दिसि संभूत जिसी आठ लक्ष्मी हुयई तिसी स्वयंवर आवी आठ वर कन्या परिणिउ । देवावास समा निवास निवासी यथाकाम सुखसंभोगभंगीसंयुक्त हूंतउ सूर्यास्तोदय अजाणतउ हूंतउ जु जु इंद्रियानुकूलु सु सु यथारुचि भोगवइ, जु जु दुक्खकरु सु सु सत्ताई करी न जाणई। पंचोत्तर सुर जिम सुखसागर निमग्नु हूंतउ सु कालु अतिक्रमावइ । 30 463) अनेरइ दिवसि कांत' कांताजनांकशय्यासुप्त हूंता तेह रहइं जेतलई चित्त माहि इसी चिंता ऊपजइ जु 'मू रहई किसा कारण लगी इसी देव समान ऋद्धि हुई ' तेतलइ आगिलइ गमइ दिव्यवस्त्रालंकार भासुर जिसउ सुरु हुयइ तिसउ पुरुषु प्रकटु हुई करी अंजलिकरणु पूर्वकु भणइ । “ देव 8461) 1 B. P.- व्रतु-। 2 P. कवडां। 3 P. ति। 4 Bh. P. - कंचुकित-15 Bh. P. होइसइ । 6 P. दिनि । 7 Bh. P. जिसडे। 8 P. तिमि । 9 Bh. सुवर्ण। 10 Bh. जलि। 11 P. नीसरे तोई। 12 Bh. रत्न। 13 Bh. P. स। $462) 1 B. omits वर-। 8463) 1 P. कंत। 2 P. हुइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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