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________________ $455-457 ). ] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत १५७ 8455) राजा वचनसुधासेक समुल्लासित कीर्ति कल्पलतावितानु हूंतउ आघउ चालिउ। संध्यासमइ महादुम एक अधोभागि वासइ राहिउ। “संधि समुद्रि धनवंति चउथइ दिवसि पडिसियां । धनसलिल माहि विलसियां । दारिद्रयधुलि ऊतारिसियां" इसी वात करता वनांतरित' चोर राजेंद्रि तिहां जाणिया 'किसी परि ए चोर संघ विधात कारक नहीं हूयई' जेतलइ मन माहि राजेंदु इसी परि चीतवइ तेतलइ दीपिकादीपिताशावकाश उदायुध महायोध तिहां आविया। राजेंद्र आगइ भणइं, 5 "तउ कवणु! के एकि चार संघ विघातकारक हेरकहं अम्ह आगइ ईहां कहिया छई। जइ तउं जाणइ तउ कहि । जिम ति चोर मारी करी संघ रक्षा करी यशु अनइ पुण्य बि वस्तु ऊपार्जा'। जिणि काराणि पर नायकि श्रीगाधि नामकि जिनशासन भक्ति तीहं चोरहं मारिवा निमित्तु अम्हे मोकलिया छां।" राजा पुनरपि चित्ति चीतवइ । 'साचइ भणिइ चोर घात पातकु लागइ। कूडइ' भणिइ संघ लंटन दूषणु लागइ। इसउं चीतवी करी राउ भणइ। “तुम्हे संघि जाऊ' । तिहां गया हूंतां रहई 10 संघरक्षा पुण्य अनइ यशुबे बोल होइसिई । ति पुरुष राजा नइ वचनि करी रंजिया संघ माहि गया। लतावितान हूंता चोर नीसरिया राजेंद्र ने पगे आवी करी' पडिया। इस बीनवई, “अहो महापुरुष ! तई अम्हे ईहां छता जाणिया पुण अम्हारी दया करी तई न कहियाई। त्रिणि कारणि तडे अम्ह रहई जीवितव्यदाता परमोपकारी पिता।" इसउं भणी प्रणमी करी वली गया। 6456) प्रभाति राजा आघउ चालिउ। केतली कल गया हूंता ऊतावला असवार के एकि 15 लिया। राय आगइ कहई, “जिाण अम्हारउ ठाकुर दांडउसु सु ईहां किहांई दीठउ । जइ दीठउ तउ कहि, जिम सुमारी करी आपणा ठाकुर तण वैरु सोध" इस सांभली करी राजा मन माहि चीतवइ । 'आपणा जीवितव्य तणइ कारणि कउणु विचक्षणु कूडउं बोलइ'? इसउं चीतवी राउ भणइ, "हउ सु हंसु राजा"! आयुध ले करी आगइ ऊभउ हूयउ। तउ एक गमइ अनेकि अश्वाधिरूढ प्रौढ' सुभट', बीजइ गमइ एक हंसु राजा। तउ पाछइ धर्मप्रभावइतउ युद्ध करतउ राजा घणेई असवारे 20 पाछउ करी न सकिउ । किंतु पंचपरमेष्ठि महामंत्र समरण परायणु तेऊ जु एक सर्वे निर्जिणी करी संग्राम भूमि पीठि रहिउ। 457) 'सत्यवादिन् जयजयेति वादपूर्वकु देवदुंदुभि नाद करण समकाल पंचवर्ण कुसुम नी मस्तांक करतउ तह वन तणु अध्यक्षु व्यक्षु नामि यक्षु प्रत्यक्षु आगिलइ गमइ हुयउ। ताहरइ सत्यवादि करी प्रसन्नचित्तु हर्ष व्यक्षाख्यु' यक्षु ताहरा बहरी सव्वे निर्जिणी करीत आगह इस कहउं, “रत्नशंगाभिधानि गिरि जिणि दिणि यात्रा हुयइ, आजु सु दिवसु, तिणि कारणि इणि विमानि . माहरइ चडि, जिम हवडाई जि तिहां जाइयइ। तर राउ विमानि चडि। आपणपत्रं दिव्यालंकार शृंगारधारकु देखइ । आगलिइ गमइ दिव्य संगीतकु स्वकीय गुण तणइ गानि करी मनोहरु सांभलइ । गुह्यक नइ अर्द्धासनि समासीनु हूंतउ हंसु देवगुहि आविउ । दिव्य कुसुम गंधसार घनसार कस्तूरिका गुरुवारहं करी जिनबिंबह रहई महापूज करी यात्रा संपूर्ण करइ । विमानाधिरूढु राजपुरी परिसरोद्यानि आविउ। यक्षि अर्जुनु रिपु बांधी करी पगे आणी घातिउ। सु रिपु दया परिणाम वसइतउ मेल्ही करी हंसु राजा राजपुरी माहि आवी राजि बइठउ। “दिव्यभोग राजेंद्र रहई तुम्हे पूरिवा” इसउ आइसु दे करी चत्तारि यक्ष हंस रहई अंगरक्ष त्र्यक्षयक्षु मेल्ही करी राउ मोकलावी आपणइ थानकि पहुतउ । हंसु राजेंद्रु राजपुरीजन रहई महाहर्षु ऊपजावतउ सत्यप्रभावि पुरंदर जिम प्राज्यु राज्यु प्रतिपाली करी देवलोकि गयउ । 35 8455) 1 Bh. P. विलसिया। 2 P.-रिता। 3 P. कइ। 4 P. या सु। thus confusing it with previous करी। 5 P. ऊपाजी। 6 P. कूड। 7 Bh. जायउ। 8 Bh. होसिई। 9P. omits. $456) 1 P. 371990 2 Bh. added in margin. 3 Bh. omits. 8457) 1 P. हवउ । 2P. त्रक्षाख्यु । 3 Bh. adds-पति, but it is cancelled later. 4 B. P. अर्जुनु । 5 P.-वशतउ। 6 P. omits. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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