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पडावश्यकबालावबांधवृत्ति
(6415-420
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मलष्यगति जि अनंतरमुक्तिगति रहइं कारण परंपरा करी तिर्यचगति नरकगति देवर्गात पण मुक्तिगति रहई कारण छई । तत्र तिर्यचगति हूंता उद्धृत्तसिद्ध थोडा तीहं कन्हा त्रिन्हि नरकगात उद्धृतमनुष्यगति उद्धृतदेवगति उद्धृतसिद्ध संख्यात गुण ।
इति गतिविषइ सिद्ध नी अल्पबहुत्व भावना भणी। 5415) अथ लिंग विषइ अल्पबहुत्वभावना कहियई।
ईहां नपुंसकलिंग स्त्रीलिंग पुरुषलिंग लक्षण लिंग लीजई । तथा । निजलिंग अन्यलिंग गृहलिंग लक्षण इव्यलिंग तथा भावपूर्व स्वलिंग लक्षणु भावलिंगु पुण लीजय ।
तत्र नपुंसकलिंग सिद्ध थोडा तीहं कन्हा स्त्रीलिंगसिद्ध असंख्यातगुण । तीहं कन्हा पुरुष लिंग सिद्ध असंख्यातगुण । तथा व्यलिंग सिद्ध थोडा तीहं कन्हा भावलिंगसिद्ध असंख्यात गुण ॥
इति लिंग विषइ सिद्धहं तणी अल्पबहुत्वभावना भणी॥ 5416) अथ तीर्थ विषइ कहियइ।
तत्र एकि तीर्थसिद्ध हुयई । एकि अतीर्थ सिद्ध हुयई । तत्र अतीर्थ सिद्ध थोडा तीहं कन्हा तीर्थसिद्ध असंख्यातगुण ।
इति तीर्थ विषद सिद्ध नी अल्पबहुत्व भावना भणी । $417) अथ चारित्र विषड् कहियइ ।
जेहे सामाइकच्छेदोपस्थापनक परिहारविशुद्धि सूक्ष्मसंपराय यथाख्यात नामक पांच चारित्र । फरसियां हयई पूर्वावस्थाकालिति 'फासिय पंच चरित्तसिद्ध कहियई। तथा जेहे पहिलउं चारित्त फरसिउं न हुयई बीजां चत्तारि चारित्त फरिसियां पूर्वावस्था हुयई ति अपढम चरणसिद्ध कहियई । तथा त्रीज परिहार नामकु चारित्तु फरसिउं नहीं बीजां चत्तारि चारित्त पूर्वावस्था जेहे फरसियां ति अतृतीय चरणसिद्ध कहियई । तथा बीजउं छेदोपस्थान चारित्तु न फरसिऊं बीजां चत्तारि चारित्र 20 जेहे फरसियां पूर्वावस्थां ति द्वितीयवर्ज चरणसिद्ध कहियई। तत्र 'फासिय पंच चरित्त सिद्ध' थोडां तहिं कन्हा 'अपदमचरणसिद्ध' संख्यातगुण । ती कन्हा अतृतीयचरणांसद्ध संख्यातगुण । तीह कन्हा सामायिक परिहारवर्ज चरणसिद्ध संख्यातगुण । तीहं कन्हा द्वितीयवर्ज सेस चरणसिद्ध संख्यातगुण।
इति चारित्र विष सिद्ध नी अल्पबहुत्व भावना भणी। $418) अथ बुद्ध विषइ कहियइ ।
तत्र एकि स्वयंबुद्ध हुयई । एकि बुद्धबोधित हुयई। तत्र प्रत्येकबुद्ध सिद्ध थोडा। तीह कन्हा बुद्धबोधित सिद्धं असंख्यातगुण ।
इति बुद्धविषइ सिद्ध नी अल्पबहुत्व भावना भणी । 8419) अथ ज्ञान विषइ कहियइ ।
तत्र पहिला मतिज्ञान श्रुतज्ञान लक्षण बिज्ञान पूर्वावस्थाकालि जीहं रहई इयां ति विज्ञान सिद्ध । तथा मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान लक्षण त्रिन्हि ज्ञान जीहं रहई पूर्विहिं हूयां ति त्रिज्ञान सिद्ध ।
तथा मति श्रुत अवधि मनःपर्यायज्ञानलक्षण चत्तारि ज्ञान जीहं रहई पूर्विहिं हूयां ति चतुर्ज्ञान सिद्ध । जीहं रहई मति श्रुत अवधि भनःपर्याय केवलज्ञान नामक पांच ज्ञान इयां ति पंचज्ञान सिद्ध ।
___तत्र द्विज्ञान त्रिज्ञान चतुर्ज्ञान सिद्ध थोडा । तीहं कन्हा पंचज्ञान सिद्ध असंख्यातगुण । इति । ज्ञान विषइ अल्पबहुत्वभावना सिद्ध नी भणी।
8420) अथ अवगाहना विषइ कहियइ ।
तत्र जघन्य मध्यम उत्कृष्ट भेदश्तउ त्रिविध अवगाहना शरीरु हुयइ । तत्र सप्तहस्तमान जघन्यावगाहना। तेह ऊपरि उत्कृष्ट हेठी ज हुयइ स मध्यमावगाहना । पंचशत धनुष्कमान उत्कृष्ट
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