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$103-105 ). ५६८-५७२]
श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत औदारिक प्रयोक्ता प्रथमाष्टमसमययो रसाविष्टः । मिश्रौदारिक योक्ता सप्तमषष्ठद्वितीयेषु ॥
[५६८] कार्मण शरीर योगी, चतुर्थके पञ्चमे तृतीये च । समयत्रयेपि तस्मिन् भवत्यनाहारको नियमात् ॥
[५६९] तिणि कारणि त्रिन्हि समय सीम समुदघात गत केवली अनाहारक । तथा अयोगी चऊदमइ , गुणठाणइ वर्त्तमानु साधु कहियइ सु पुण अनाहारकु । तथा 'सिद्धा य अणाहारा' सिद्धमोक्षगत जीव पुण अनाहारक कहियई।' सेसा आहारगा जीवा' इति । ईहं चउं हूंता बीजा जीव सर्वई आहारक कहियई । गतं आहारकद्वारम् ।
ए गत्यादिक चऊद संतपद कहियई। ईह माह चउं संतपदे सिद्ध लाभई । दसे संतपदे सिद्ध न लाभई । तथा च भणितं - 10
तत्थ य सिद्धा पंचमगईइ नाणे य दंसणे सम्मे । संति त्ति सेसएसुं पएसु सिद्धे निसेहिजा ॥
[५७०] यथा - पंचमगतिई सिद्ध लाभई १ । केवलज्ञानि सिद्ध लाभई २ । केवलदर्शनि सिद्ध लाभई ३। क्षायिकि सम्यक्त्वि सिद्ध लाभई ४।।
'सेस पएसु निसेहिज्जा' इति सिद्ध अणिद्रिय हुयई तिणि कारणि इंद्रियसंतपदि सिद्ध न1. लाभई १ । सिद्ध असरीर हुयई तिणि कारणि कायसंतपदि सिद्ध न लाभई २। सिद्ध अयोगी हुयई तिणि कारणि योगसंतपदि सिद्ध न लाभई ३ । सिद्ध अवेद हुयइ तिणि कारणि वेदसंतपदि सिद्ध न लाभई ४ । सिद्ध अकषाय हुयई तिणि कारणि कषायसंतपदि सिद्ध न लाभई ५। सिद्ध क्रियायोगरहित इयई संयम पुण क्रियारूपु तिणि कारणि संयमसंतपदि सिद्ध न लाभ६। सिद्ध अलेश्य हुयई तिणि कारणि लेश्यासंतपदि सिद्ध न लाभई ७ । अभव्य सिद्ध कदाकालिाह न हुयई तथा स्वभावइतउ 20 भव्य मुक्ति जायणहार जीव कहियई, तिणि कारणि भव्याभव्यसंतपदि सिद्ध न लाभई ८। सिद्ध न
ज्ञी तिणि कारणि संज्ञि असंज्ञिसंतपदि सिद्ध न लाभई ९ । सिद्ध अनाहारक तिणि कारणि आहारकसंतपदि सिद्ध न लाभई १० । इसी परि सत्पदप्ररूपणालक्षणु पहिलउ मोक्षतत्त्वभेदु १ ।
8404) द्रव्य प्रमाणमिति ।
जेह मुक्तजीव नउं जेवडउं पूर्वभवि चरमु देहु हुयइ तेह तणइ त्रीजइ भागि करी माठउं जीव 25 द्रव्यप्रमाणु सिद्विक्षेत्रि हुयइ । अथवा -
जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवश्वय विमुक्का ।
अनुन्न समोगाढा चिटुंति तहिं सयाकालं ॥ इसा आगमवचन इतउ अनंतु एक एक सिद्ध द्रव्यप्रमाणु इति बीजउ मोक्षतत्त्वभेदु २।।
$405) खिस फुसणे' ति। जेतलउ सिद्धावगाहनावगादु आकाशु अनइ जेतलउ तेह 30 सिद्धावगाहना पाखतियां लग्गु आकाशु तेतला सगलाई क्षेत्र तणी फरसना सिद्ध रहई । अथवा लोकाकाश तणइ असंख्यातमइ भागि एक सिद्ध रहई फरसना छइ । अनइ सर्व सिद्धक्षेत्रगत सिद्ध पुण लोकाकाश तणइ असंख्यातमइ भागि अवगाढ छई। जेवडउं सिद्धक्षेत्रु सगलूंछइ तेवडा खंड लोकाकाश तणा पुण असंख्यात खंड' हुयई । अनइ एक सिद्वावगाहनावगाढ आकाशखंडप्रमाण पुण लोकाकाश. तणा असंख्यातखंड हुयइं । विशेषु पुण एतलउं एकि खंड मोटा बीजा खंड मोटा नहीं । संख्या करी 35
[५७१]
सद्धवड सि आकाशसोटा नहीं।
403) 15. B. नहीं। 405) 1. B. omits.
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