SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$402-8403). ५३८-५४८ [५४२] 15 जह चित्तयरो निउणो अणेगरूवाई कुणइ रूवाई । सोहणमसोहणाई, चुक्खाचुक्खेहिं वन्नेहिं ॥ [५३८] तह नामपि य कम्मं अणेगरुवाइं कुणइ जीवस्स । सोहणमसोहणाई इट्ठाऽणिट्ठाणि लोयस्स ॥ नामकी । [५३९] जह इत्थ कुंभकारो पुढवीए कुणइ एरिसं रूवं । जं लोयाओ पूयं पावइ इह पुन कलसाई । [५४०] मुंभुलमाई अन्नं सुच्यिय पुढवीइ कुणइ रूवं तु । जं लोयाओ निंदं पावइ अकए वि मज्जमि ॥ [५४१] एवं कुलालसमाणं गोयं कम्मं तु होइ जीवस्स । उच्चा नीय विवागो जह होइ तहा निसामेह ॥ लोयंमि लहइ पूयं उच्चागोयं त यं होइ । सधणो रूवेण जूओ बुद्धीनिरणो वि जस्स उदएणं ॥ [५४३] अधणो बुद्धिविहीणो रुखविहीणो वि जस्स उदएणं । लोयंमि लहइ निंदं एयं पुण होइ नीयं तु ॥ गोत्रुकच् । [५४४] जह राया इह भंडारिएण विणएण कुणइ दाणाई । तेण उ पडिकूलेणं न कुणइ सो दाणमाईणि ॥ [५४५] जह राया तह जीवो, भंडारी जह तहतरायं तु । तेण उ वि बंधएण न कुणइ सो दाणमाईणि ॥ अंतरायकर्म ॥ [५४६] एउ स्वभावुबंधु प्रकृतिबंधु कहियह। जेह कर्म नी जिसी स्थिति छइ सु कर्तृ तिली स्थिति करी बांधियइ एउ स्थितिबंधु कहियइ । जेह कर्म नउ जिस उ रसु छइ सु कर्म तिसइ रसि करी बांधियइ एउ अनुभाग बंधु कहियइ । जेह कर्म रहइं जेतला कार्मण वर्गणा गृहीत पुद्गल काहया छई सु कर्मु तेतले कर्न वर्गणे पुद्गले करी बांधियइ एउ प्रदेशबंधु कहियइ।। इति सामान्यहिं चतुर्विध कर्मबंध तणउं स्वरूपु कहिउं । विशेषइतउ कर्मग्रंथ विचार वसइतउ 25 जाणिव। इति द्वादशविध निर्जरा । चतुर्विध कर्मबंध तणउ स्वरूपु भणि। ६403) अथ मोक्षतत्त्व तणा नव भेद लिखियई । संतपय परूवणया १ दव्वपमाणं २ च खित्तफुसणा ३ य । कालो ४ य अंतरं ५ भाग ६ भाव ७ अप्पा ८ बहुं ९ चेव ॥ [५४७] संतिपदानि सत्पदानि । ति पुणि गत्यादिक । यथा गइ १ इंदिए २ य काये ३ जोगे ४ वेए ५ कसाय ६ नाणे ७ य । संजम ८ दंसण ९ लेसा १० भवि ११ सम्मे १२ सन्नि १३ आहारे १४ ॥ [५४८] तत्र गति चत्तारि-देवगति १, मनुष्यगति २, तिर्यञ्चगति ३, नरकगति ४, पंचमी मुक्तिगति ५। इंद्रिय पांच--फरसन १, रसन २, घ्राण ३, चक्षु ४, श्रवण ५, उपलक्षण तउ एकद्रियजाति, बेंद्रियजाति $403) ! Bh. omits. 20 30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy