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षडावश्यकबालावबोधवृत्ति
[$402-8403). ५३८-५४८
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जह चित्तयरो निउणो अणेगरूवाई कुणइ रूवाई । सोहणमसोहणाई, चुक्खाचुक्खेहिं वन्नेहिं ॥
[५३८] तह नामपि य कम्मं अणेगरुवाइं कुणइ जीवस्स । सोहणमसोहणाई इट्ठाऽणिट्ठाणि लोयस्स ॥ नामकी ।
[५३९] जह इत्थ कुंभकारो पुढवीए कुणइ एरिसं रूवं । जं लोयाओ पूयं पावइ इह पुन कलसाई ।
[५४०] मुंभुलमाई अन्नं सुच्यिय पुढवीइ कुणइ रूवं तु । जं लोयाओ निंदं पावइ अकए वि मज्जमि ॥
[५४१] एवं कुलालसमाणं गोयं कम्मं तु होइ जीवस्स । उच्चा नीय विवागो जह होइ तहा निसामेह ॥ लोयंमि लहइ पूयं उच्चागोयं त यं होइ । सधणो रूवेण जूओ बुद्धीनिरणो वि जस्स उदएणं ॥ [५४३] अधणो बुद्धिविहीणो रुखविहीणो वि जस्स उदएणं । लोयंमि लहइ निंदं एयं पुण होइ नीयं तु ॥ गोत्रुकच् । [५४४] जह राया इह भंडारिएण विणएण कुणइ दाणाई । तेण उ पडिकूलेणं न कुणइ सो दाणमाईणि ॥
[५४५] जह राया तह जीवो, भंडारी जह तहतरायं तु ।
तेण उ वि बंधएण न कुणइ सो दाणमाईणि ॥ अंतरायकर्म ॥ [५४६] एउ स्वभावुबंधु प्रकृतिबंधु कहियह।
जेह कर्म नी जिसी स्थिति छइ सु कर्तृ तिली स्थिति करी बांधियइ एउ स्थितिबंधु कहियइ । जेह कर्म नउ जिस उ रसु छइ सु कर्म तिसइ रसि करी बांधियइ एउ अनुभाग बंधु कहियइ ।
जेह कर्म रहइं जेतला कार्मण वर्गणा गृहीत पुद्गल काहया छई सु कर्मु तेतले कर्न वर्गणे पुद्गले करी बांधियइ एउ प्रदेशबंधु कहियइ।।
इति सामान्यहिं चतुर्विध कर्मबंध तणउं स्वरूपु कहिउं । विशेषइतउ कर्मग्रंथ विचार वसइतउ 25 जाणिव।
इति द्वादशविध निर्जरा । चतुर्विध कर्मबंध तणउ स्वरूपु भणि। ६403) अथ मोक्षतत्त्व तणा नव भेद लिखियई ।
संतपय परूवणया १ दव्वपमाणं २ च खित्तफुसणा ३ य ।
कालो ४ य अंतरं ५ भाग ६ भाव ७ अप्पा ८ बहुं ९ चेव ॥ [५४७] संतिपदानि सत्पदानि । ति पुणि गत्यादिक । यथा
गइ १ इंदिए २ य काये ३ जोगे ४ वेए ५ कसाय ६ नाणे ७ य ।
संजम ८ दंसण ९ लेसा १० भवि ११ सम्मे १२ सन्नि १३ आहारे १४ ॥ [५४८]
तत्र गति चत्तारि-देवगति १, मनुष्यगति २, तिर्यञ्चगति ३, नरकगति ४, पंचमी मुक्तिगति ५। इंद्रिय पांच--फरसन १, रसन २, घ्राण ३, चक्षु ४, श्रवण ५, उपलक्षण तउ एकद्रियजाति, बेंद्रियजाति
$403) ! Bh. omits.
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