________________
१३३
[५२२]
[५२३]
[५२४]
[५२५]
[५२६] 10
[५२७]
8402). ५२२-५३७
श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत कोहो माणो माया लोभो, चउरो वि डंति चउभेया। अण अप्पचक्खाणा, पचक्खाणा य संजलणा ॥ कोहो माणो मायालोभो. पढमा अणतबंधीओ। एयाणुदए जीवो, इह संमत्तं न पावे ॥ कोहो माणो माया लोभो, बीया अपच्चक्खाणाओ। एयाणुदए जीवो, विरयाविरयं न पावेइ ॥ कोहो माणो माया लोभो तइया उ पच्चक्खाणाओ। एयाणुदए जीवो, पावेइ न सब विरई तु ।। कोहो माणो माया लोभो, चरमा उ हुँति संजलणा। एयाणुदए जीवो न लहइ अहक्खाय चारित्तं ।। नव नोकसाय भणिमो, वेया तिन्नेव हास छकं च । इत्थी-पुरिस-नपुंसग तेसि सरूवं इमं होइ । पुरिसं पइ अहिलासो, उदएणं होइ जस्स कम्मस्स । सो फुफुम दाह समो इत्थी वेयस्स उ विवागो । इत्थीए पुण उवरिं जस्सुदएणं तु रागमुष्पज्जे । सो तण दाह समाणो होइ विवागो उ पुमवेए ॥ इत्थी पुरिसाणुवरिं, जस्सुदएणं तु रागमुप्पज्जे । नगर मही दाह समो, जाण विवागो अपुमवेए॥ सनिमित्त निमित्तं वा जंहासं होइ इत्थ जीवस्स । सो हास मोहणीयस्स होइ कम्मस्स उ विवागो ॥ सचित्ता चित्तेसु य बाहिर दब्बेसु जस्स उदएणं । होइ रईरइ मोहे सो उ विधागो मुणेयव्यो । सचित्ताचित्तेसु य बाहिरदब्बेसु जस्स उदएणं । अरई होइ हु जीवे सो उ विवागो अरइमोहे ॥ भय वज्जियंमि जीवे जस्सिह उदएण हुंति कम्मस्स । सत्त भयट्ठाणाई भयमोहे सो विवागो उ ॥ सोय रहियंमि जीवे जस्सिह उदएण होइ कम्मस्स । अकंदणा इ सोगो तं जाणह सोग मोहणियं ॥ दुग्गंध मलिणंगेसु य अभितर बाहिरेसु दव्वेसु । जेण विलीयं जीवे उप्पज्जइ सो दुगुच्छाओ। मोहनीउ ।। दुक्खं न देइ आउं न वि य सुई देइ चउसु विगईसु । दुक्खसहाणाधारं धरेइ देहट्ठियं जीवं ॥ आयुःकर्मु ।
[५२८] [ ५२९]
15
[ ५३०]
[५३१] 20
[५३२]
25
[५३३] [५३४] [ ५३५] [५३६] [५३७]
30
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org