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________________ १३२ षडावश्यकघालावबोधवृत्ति [$402). ५१०-५२१ जिम मधु पीधउं सचेतनावस्था फेडइ अचेतनावस्था करइ तिम मोहनीउ कर्मु जीव रहई चारित्र' चेतना अपहरइ । अचेतना करइ तिणि कारणि मद्यपानसद्भाव मोहनीउ कर्मु ४। जिम चोरु हडि घातिऊ हडि वियोग पाखइ छूटइ नही तिम आयुःकर्म तणइ सद्भावि जीवु भवांतरि जाई न सकइं तिणि कारणि जिसउ हडि सद्भावु तिसउ आयुःकर्म सद्भावु ५। जिसउ चित्रकर नउ सद्भावु तिस नामकर्मतणउ सद्भावु ६ । जिसउ कुंभकार सद्भावु तिसउ गोत्राकर्म सम्भावु ७।। जितउ भंडारी तण: सद्भावु तिसउ अंतरायकर्म तणउ सद्भावु । तथा च भणितं सर उग्गय ससिनिम्मलयरस्स जीवस्स छायणं जमिह । नाणावरणं कम्मं पडोवमं होइ एवं तु ॥ [५१०] ह निम्मला वि चक्खू पडेण केणावि छाइया संती । मंद मंदतरागं पिच्छइ सा निम्मला जइवि नाणावरणं ॥ [५११] जह राया तह जीवो पडिहारसमं तु दंसणावरणं । तेणि ह विबंधएणं न पिच्छए सो घडाईयं ॥ दंसणावरणं ॥ [५१२] महुलित्त निसियकरवालधार जीहाइ जारिसं लिहणं । तारिसयं वेयणिय सुहदुह उप्पायगं मुणइ ॥ [५१३] महुआसायण सरिसो सायावेयस्स होइ हु विवागो। जह असिणा तहिं छिज्जइ सो उ विवागी असायस्स ॥ वेयणीयं ॥ [५१४ ] जह मज्जपाणमूढो लोए पूरिसो पख्य सो होइ । तह मोहेण वि मूढो जीवो वि परव्वसो होइ ॥ [५१५] मोहेइ मोहणीयं तंपि समासेण होइ दूविहं तु । दंसणमोहं पढमं चरित्तमोहं भवे बीयं ॥ [५१६] दंसणमोहं तिविहं सम्मं मीसं च तह य मिच्छत्तं । सुद्धं अद्भविसुद्ध अविसुद्धं तं जहा कमसो ॥ [५१७] केवलनाणुवलद्धे जीवाइ पयत्थ सदहे जेण । तं समत्तं कम्मं सिवसुह संपत्ति परिणामं ॥ [५१८] रागं नवि जिणधम्मे नवि दोसं जाइ जस्स उदएणं । सो मीसस्स विवागो अंतमुहुत्तं हवइ कालं ॥ [ ५१९] जिणधम्ममि पओसं, वहइ य हियए ण जस्स । उदएणं तं मिच्छत्तं, कम्मं संकिट्ठो तस्स उ विवागो ॥ [५२०] जं पि य चरित्त मोहं तं पि हु दुविहं समासओ होइ । सोकस जाण कसाया नवभेया नोकसायाणं ॥ [५२१] -102) 2 Bh. मोहनीय। 3 Bh. सम्यक्त्व चारित्र । 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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