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________________ xiv वाली राजकीय प्रवृत्ति के विषय में भी बहुत-सी चर्चायें होती थी। उनकी एक मात्र विदुषी पुत्री थी, जिसको भी भारतीय संस्कृति और जागृति के विषय में बहुत रुचि थी और वह कई बार मेरे द्वारा बलिन में स्थापित हिन्दुस्तान हाउस में मिलने आया करती थी। डॉ. ल्यूडर्स तथा उनकी पत्नी एवं प्रो. गेवेनित्स तथा उनकी पुत्री एक बार हिन्दुस्तान हाउस में चाय पान करने के लिए भी आये थे। बलिन में बैठे बैठे भी गुजरात पुरातत्त्व मंदिर द्वारा छपते हुए और छपायेजाने वाले ग्रन्थों के विषय की चिन्ता बराबर बनी रहती थी। प्रबन्ध चिन्तामणि के कुछ प्रफ भी मैं वहाँ मंगवाता रहा। प्राचीन गुजराती गद्य संदर्भ की प्रस्तावना जो मैं विस्तार के साथ लिखना चाहता था, परन्तु जर्मनी चले जाने के कारण वह लिख नहीं पाया। बाद में पीछे से पुरातत्त्व मंदिर को उसी मूलरूप में छपवाकर उसे प्रसिद्ध कर देना पड़ा। यदि उस प्रस्तावना को मैं उस समय लिख पाता तो उसमें प्रस्तुत 'षडावश्यक बालावबोध' के साथ सम्बन्ध रखनेवाली उपयुक्त माहिती लिख देता। जर्मनी से आने पर ज्ञात हुआ कि गुजरात पुरातत्त्व मंदिर की स्थिति विघटित-सी हो गई है, और मुझे महात्मा गांधीजी द्वारा प्रारंभ नमक सत्यागृह आन्दोलन में से संलग्न होकर सन् १९३० के मई महीने में अंग्रेज सरकार के जेल खाने में छ: महीने की विश्रान्ति का आनन्द लेना पड़ा। नासिक की सेंट्रल जेल में रहते हुए स्व. मित्रवर श्री कन्हैयालाल मुंशी से घनिष्ठ सम्बन्ध हुआ। हम दोनों पास पास भी कोटरियों में रातको सो जाया करते थे; परन्तु सारा दिन; खाना पीना, उठना बैठना, चर्चा वार्ता करना आदि सब एक साथ ही करते रहते थे। मुंशीजी वहीं जेल में रहते हुए अपनी 'गुजरात एंड इट्स लिटरेचर' नामक प्रसिद्ध पुस्तक का आलेखन भी करते रहते थे। उसके विषय में उनके साथ हमेशा विचार-विमर्श होता रहता था। 'कुवलय माला' आदि ग्रन्थों का परिचय मैने उनको कराया उसी तरह और भी अनेक ग्रन्थ तथा ऐतिहासिक प्रमाणों आदि के विषय में भी उनको बहुत से नोट्स कराये। उनके साथ भी प्राचीन गुजराती गद्य विषयक साहित्य के अनेक ग्रन्थों का परिचय देते हुए प्रस्तुत 'षडावश्यक बालावबोध' नामक ग्रन्थ का भी विशिष्ट परिचय कराया। यह सुनकर मुंशीजी की बड़ी तीव्र अभिलाषा हुई कि गुजराती भाषा के ऐसे महत्त्व के ग्रन्थों का उद्धार करने की कोई योजना बनानी चाहिए। चूंकि गजरात पुरातत्त्व मंदिर की विघटना हो चुकी थी, अतः उसके स्थान पर बम्बई के पास अन्धेरी में एक ऐसी नूतन साहित्यिक संस्था स्थापित की जाय, जिसमें श्री मुंशीजी, मैं तथा अन्य इसी प्रकार के दो चार विद्वान आसन लगा कर बैठे और गुजरात की संस्कृति के साधनभूत विविध प्रकार के ग्रन्थों का आलेखन, सम्पादन तथा प्रकाशन आदि का कार्य किया जाय । श्री मुंशीजी की योजना थी कि उनके द्वारा पूर्वस्थापित गुजरात साहित्य सभा का पुननिर्माण किया जाय और अन्धेरी में एक अच्छीसी उपयुक्त जगह लेकर वहाँ पर कार्यारंभ किया जाय। इस विषय में जेल में बैठे बैठे हम अनेक मनोरथ किया करते थे। ___ इसी नासिक जेल में गुजरात बहुश्रुत, वयोवृद्ध, ख्यातनामा कवि श्री बलवन्तराय कल्याणराय ठाकोर मुझसे मिलने आये। वे गुजराती साहित्य के उद्भट विद्वान थे। उस समय वे प्राचीन गुजराती भाषा की साहित्यिक कृतियों का अध्ययन एवं सम्पादन कार्य करना चाहते थे। उन्होंने जब मेरी सम्पादित उपर्युक्त 'प्राचीन गुजराती गद्य संदर्भ' नामक पुस्तक देखी तो उस पर उनकी काम करने की इच्छा हुई। प्रसंगवश वे नासिक के पास देवलाली नामक स्थान में रहनेवाले अपने एक मित्र के पास हवा खाने की दृष्टि से कुछ दिन आकर रहे थे । उनको ज्ञात हुआ कि मैं भी नासिक की जेल में हवा खा रहा हूँ। तब वे जेल सुपरिटेंडेंट की खास इजाजत लेकर मुझसे मिलने आये, सबसे पहले तो मुझे बहुत मीठे शब्दों में उन्होंने उपालम्भ दिया, कि आप साहित्य सेवा के महान् पुण्य कार्य को छोड़कर इस राजनैतिक खटपट के गोरखधन्धे में पड़कर अपना अमूल्य समय क्यों नष्ट कर रहे हैं-इत्यादि। चूंकि प्रो. ठाकोर एक विशिष्ट विचारधारा रखनेवाले बड़े स्वतंत्र मिजाज के धनी थे। महात्मा गांधीजी द्वारा चलाई गई कुछ राजकीय प्रवृत्तियों के वे खास विरोधी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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