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________________ १०२ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [8340-$341 ). ३६६-३६८ एवं बिउं ऊणां त्रिउ ऊणा इसी परि एकि ऊणां तां पूछियई जा इगुणत्रीसे दिवसे ऊणा छ मास हुयई। पाछई' पांच मास करी सकइ, इसी परि जीव कन्हा पूछियइ । अत न सकू। पुनरपि एकि एकि दिवसि ऊणा पांच मास तां पूछियई जां इगुणत्रीसे दिवसे ऊणा पांच मास हुयई। पाछइ चियारि मास करी सकइ इसी परि पूछियइ पूर्ववत् जां इगुणत्रीसे दिवसे ऊणा चियारि मास हुयइं । पाछइ त्रिन्हि मास 5 करी सकइ इसी परि पूछियई पूर्ववत् जां इगुणत्रीसे दिवसे ऊणा त्रिन्हि मास हुयइं । पाछइ बि मास करी सकइ इसी परि पूछियइ एकि एकि दिवसि ऊणा तां जां इगुणत्रीसे दिवसे ऊणा बि मास हुयइं । पाछइ एकु मासु करी सकइ इसी परि पूछियइ तां एकि एकि दिवसि घटावीतइ पूछियइ जां तेरहे दिवसे ऊणउ एकु मासु हुयइ । पाछइ एक दिवसि हाणि कीधी हूंती शेष सोल दिवस हुयई तीहं तणउ तपु चउत्रीसमु हुयइ । तउ पाछइ चउत्रीसमु करी सकइ इसउं पूछियइ । अत न सकूँ । तउ पाछइ बि 10 वि घटावतां बत्रीसम त्रीसम अट्ठावीसम छव्वीसम चउवीसम बावीसम वीसम अष्टादशम षोडशम चतुर्दशम द्वादशम अष्टम षष्ठसीम तां पूछियइ जां चतुर्थे । तउ पाछइ आंबिलु एकासणउं पुरिम निव्विय पोरिसि सीम तां पूछियइ जां नवकारसहितु । पाछइ जु सकइ सु प्रत्याख्यानु मन माहि चीतवी करी 'नमो अरहंताणं' कही काउस्सग्गु पारइ । $340) पारियइ हूंतइ 'लोगस्सुजोयगरे' भणी बइसी मुहुंती सरीरु पडिलेही बि बानणां दे 15 असढु मायारहितु हूंतउ चिंतितु प्रत्याख्यानु कहइ । 'इच्छामो अणुसटिं' इसउं भणी गोडिहिलियां होई संसारदावा अथवा परसमयतिमिरतरणिं इत्यादि' स्तुति त्रिन्हि वर्द्धमान छंदोविरचित मंदस्वरि करी कहियई। पाछइ 'नमोत्थुणं' कही ऊभां होई देव वांदियई। गोडिहिलियां होई 'नमोत्थुणं' कही एक खमासमणि आचार्यमिश्र वांदियई । बीय खमासमणि उपाध्यायमिश्र वांदियइं । तइय खमासमणि सर्वसाधु वांदियइं । एतलइ रात्रि प्रतिक्रमणु 20 संपूर्ण हूयउं । तउ पाछइ कम्मभूमिहिं पढमसंघयणि इत्यादि नमस्कार श्रीऋषभवर्द्धमानक इत्यादिक स्तवन प्रतिलेखनाकुलकादिक 'कुलं अट्ठावयंमि उसहो' इत्यादि प्रभातमांगलिक्यभावनाभावुकु सज्झाउ करी मुहंती पट्टक पोसाल पडिलेहण प्रकासि हूयइ हूंतइ कीजइ । इति रात्रिय प्रतिक्रमणविधि । $341) अथ पाक्षिक चातुर्मासिक सांवत्सरिक प्रतिक्रमण विधि लिखियइ । मुहपुत्तीवंदणयं संबद्धाखामणं तहा लोए । वंदणपत्तेयं खामणाणि वंदणय सुत्तं च ॥ [३६६] सुत्तं अब्भुट्ठाणं उस्सग्गो पुत्तिवंदणं तह य । पजंते खामणयं तह चउरो थोभवंदणया ॥ [ ३६७] पक्खिय तिनि सयाई ऊसासा पणसया उ चउमासे । 'अहसहस्सं वरिसे सिजसुराए तहुस्सग्गो ॥ इति । [३६८] देवसियपडिकमणइ जउ 'वंदामि जिणे चउव्वीसं' कहिउं हुयइ । तउ पाछइ एक खमासमणि 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पक्खिय मुहपुत्तियं पडिलेहेमि' 'चउमासइ चउमासिय मुहपुत्तियं पडिलेहेमि संवत्सरि संवत्सरिय मुहपुत्तियं पडिलेहेमि' इसउं कहियइ । बीजउं खमासमणु दे मुहुंतीसरीरु पडिलेही 25 30 8339) 1 Bh. omits. 2 Bh. repeats. 3 Bh. दिवसि । 4 B. पारियइ। 8340) 1 Bh. omits. 2 Bh. रात्रि।8341) 1 Bh. कहियउं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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