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8337 - 339 ). ३६५ ]
श्री तरुणप्रभाचार्यकृत
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पदस्थमुनि साधम्मिक हुयई ति सर्वइ वांदी करी एक खमासमणि आचार्यमिश्र वांदियहं । बीय खमासमणि उपाध्यायमिश्र वांदियई । तइय खमासमणि' भगवंत वर्त्तमानधर्म्मगुर वांदियई । चथइ खमासमणि सर्वसाधु वांदियई । पाछइ गोडिहिलियां होई मुहुंती मुहबार दे करी माथउं भुई लगाडी करी 'सव्वस् विराइय' इत्यादि कहियइ । छेहि 'इच्छाकारेण संदिसह' इसउं पदु न कहियई' । तस्स मिच्छामि दुक्कडं । करेमि भंते आलोयणउं तथा तस्सुत्तरीत्यादि कही करी चारित्रातिचार विसुद्धिनिमित्तु काउस्सग्गु 5 कीजइ । लोगस्सुज्जोय गरे एक चीतवियइ । चंदेसु निम्मलयरा सीम इसी परि अनेरे काउस्सग्गि लोगस्सुजोयगरे पंचवीस ऊसास एतीही जि कल चीतवेवी पारियइ हूंतइ लोगस्सुज्जोयगरे संपूर्ण भणियइ ।
(337) पाछइ सव्वलोए अरहंत चेइयाणं इत्यादि कही दर्शनातिचार विशुद्धिनिमित्तु बीजउ काउस्सग्गु कीजइ । लोगस्स उज्जोयगरे चीतवीयs । पारियइ हूंतइ पुक्खरवरदीवढे कहिय' सुयस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तियाए इत्यादि कही ज्ञानातिचारविसुद्धिनिमित्तु त्रीजउ काउस्सग्गु 10 कीजइ । रात्रिगतु अतिचारु चीतवियइ । इहां शिष्यु पृच्छा करइ, दिवस तणइ पडिकमणइ जिम पहिलउ काग माहि अतीचारु चीतवियइ, तिम रात्रि पडिकमणइ पुणि किसइ कारण पहिलउं अतीचारु न
वियई ? गुरु भइ, निद्राघूणिमादिकु चित्तसमाधानु तथा सरीरालस्यभावु जिम न होइ तिणि कारण त्रीइ काउस्सग्गि अतीचारु चीतवियइ । पाछइ सिद्धाणं बुद्धाणं कही करी संडासा पडिलेहण करी इसी ऊभडू थकां मुहुंती पडिलेही सरीरु पडिलेही द्वादशावते वांदणउं दे करी आलोयणउं कीजइ । 15 पोसहि की संथारा उव्वट्टण किई, परियट्टण किई, आउंटण किई, प्रसारण किई, छप्पइया संघट्टण किई, अञ्चक्खुविसइ काई किई, इसउं कहियइ ।
(338) एह नउ अर्थु संस्तारकोद्वर्त्तना कृता । किसउ अर्थ ? वाम पार्श्वइतर दक्षिणपार्श्व फिरिडं अथवा दक्षिणपार्श्वइतर वामपार्श्व फिरिडं, तत्र जि के जीव मत्कुण सुलहलादिक विराधिया हुई नई कारण संथारा उद्घट्टणादिक आलोइयई । एवं परियट्टण किई परिवर्तना' वारवार 20 उभयपार्श्वहं फिर घिउं । आउंटण किई आकुंचना कृता निद्रा माहि पसारिया अंग तणी संकोचना Aata | पसारण कई प्रसारणा कृता संकोचित अंग तणी निद्रा माहि पसारणा कीधी । छप्पइया संघट्टण किई षट्पदिका संघट्टना कृता, जू तणी परिमर्द्दना कीधी । अचक्खुविषइ काई किई दृष्टिदर्शन तणइ अभावि काइका लहुडी बडी नीति कीधी । पाछइ 'सव्वस्स वि' कही, बइसी सूत्रार्थ मनि चीतवतां हूंतां मधुरस्वरि निजकर्णामृत पारणा करवा पडिकमणासूत्रु गुणियइ । ' तस्स धम्मस्स केवलीपन्नत्तस्स' 25 इस पदु श्रावकप्रतिक्रमणप्रति आम्नाय तणा अभावइतर केई एकि पढई नहीं । केइ एकि पुर्णि पढ । तथापि 'अभुट्टिओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए' एउ पदु जुगल तींहीं जि संबंधिउं छइ, तिणि कारण मनि वर्त्तमानु जाणिवरं । अब्भुट्टिओमि भणनांतरु बि बांनणां दे करी खामणउं कीजइ । खामणानंतरु अल्लियावणनिमित्तु आपणपा रहई गुरु परतंत्रताभवननिमित्तु बि बांनणां दीजइ । पाछइ 'आयरिय उवज्झाए' इत्यादि त्रिन्हि गाथा 'करेमि भंते आलोयणउं तस्सुत्तरी'त्यादि पढी काउस्सग्गु कीजइ ।
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(339) छम्मा सिउ चीतवियइ यथा- 'भगवंत श्रीमहावीरदेव तणइ तीर्थि छम्मास उत्कृष्टु पु वर्त्त । रे जीव ! करी सकइ ?' 'अत न सकूं ' । 'एक दिवसि करी ऊणा करी सकइ ?' 'न सकूं' ।
8336 ) 1 B. drops words from आचार्यमिश्र... |
2 Bh. adds पछइ नमोत्थुणं कहियइ । ऊठी । 3 Bh. ज्ञानातिचार । 8337) 1 B. drops words from पाछइ... 1 2 Bh. चारित्रातिचार - । 3 B. Bh. ऊतडू | cf. 322. 3,326.4 8338) 1 B. omits.
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