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________________ १०० षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$334 - 8336). ३५७-३६५ ___$334) 'वंदणवत्तियाए पूयणवत्तियाए' इत्यादि भणी करी काउस्सग्गु कीजइ । लोगस्सुज्जोयगरे चत्तारि चीतवियइं । पारियइ हूंतइ लोगस्सुजोयगरे भणियइ । इति श्रीअभयदेवसूरि प्रकाशित श्रीस्तंभनकपार्श्वनाथ नमस्कार शक्रस्तव कायोत्सर्गकरण समाचारी श्रीअभयदेवसूरिगच्छाम्नायवसइतउ प्रवर्त्तइ । जय तिहुयण नमस्कार भणनपूर्व प्रतिक्रमण प्रारंभण समाचारी च । तथा उत्तरापथि श्रीजिनदत्तसूरि समाराधन5 निमित्तु काउस्सागु पुणि खरतरगच्छ' समाचारीतउ कीजइ । इति दिवसप्रतिक्रमण समाचारी संपूर्णा । $335) अथ रात्रिप्रतिक्रमणविधि लिखियइ एवं ता देसियं राइयमवि एवमेव नवरि तहिं । पढमं दाउं मिच्छामि दुक्कडं पढइ सक्कथयं ॥ [३५७] उट्ठिय करेइ विहिणा उस्सग्गं चिंतए य उज्जोयं । बीयं दंसणसुद्धीइ चिंतए तत्थवि तमेव ॥ [३५८ ] तइए निसाअइयार जहक्कम चिंतिऊण पारेइ । सिद्धत्थयं पढित्ता पमन्जसंडासमुवविसइ ॥ [ ३५९] पुव्वं व पुत्ति पहेणवंदणमालोय सुत्तपढणं च । बंदणखामण वंदणगाहा तिगपढण उस्सग्गो॥ [ ३६० ] तत्थ य चिंतइ संजमजोगाण न जेण होइ मे हाणी । तं पडिवजामि तवं छम्भासं ता न काउ मलं ॥ [ ३६१] एगाइ इगुणतीलणयं पि न सहो न पंचमासमवि । एवं चउ तिहुमासे न समत्थो एगमासं पि ॥ [३६२] जातं पि तेरसूणं चउतीसइ माइ तो दुहाणीए । जाव चउत्थं तो आयंबिलाइ जा पोरिसि नमो वा ॥ [ ३६३] जं सक्कइ तं हियए धरित्तु पारित्तु पेहए पुत्तिं । दाउं बंदणमसढो तं चिय पञ्चक्खए विहिणा ॥ [ ३६४ ] इच्छामो अणुसट्ठित्ति भणिय उवविसिय पढइ तिनि थुई । मिउसदेणं सक्कत्थयाइ तो चेइए वंदे ॥ [ ३६५] 25 एवं ता देवसियमिति । ___ इसी परि पूर्वभणित परि देवसिउ पडिकमणउं कहिउं । राइयमवि एवमेवेति । राइउ पडिकमण' एवमेव-इसीही जि परि जाणिवउं । $336) 'न वरि तहिं' ति नवरं केवलं तिणि राइइ पडिकमणइ जु विशेषु सु कहियई । तप्तलोहगोलकसमान असंजत जन तथा जीवहिंसाकारक गिलोईप्रमुख जीव जिम जागइं नहीं 30 तिणि कारणि मिउसदेणं ति मृदुशब्दि करी जिम आपणपा हूंतउ बीजउ को सांभलइ नहीं तिसइ स्वरि करी देववंदना सीम । किसउ अर्यु ? छेह सीम पडिकमणउं करेवउं । तत्र पूर्वभणित सामाइकशकस्तवदुस्वप्नादि प्रायश्चित्तविशुद्धिनिमित्त कायोत्सर्गकरणानंतर पडिकमणा' ठाइवा समइ हूयइ हूंतइ जि केई 8334) 1 Bh.-गच्छि। 335) 1 Bh. adds पुणि। $336 ) 1 Bh. णइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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