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________________ 3342 ). ३६८ ] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत १०३ बि बानणां दीजई । “पाछइ संबद्धाखामणेणं अब्भुढिओहं अभितरपक्खियं खामेमि' 'चउमासइ चउमासियं खामेमि संवत्सरि संवत्सरियं खामेमि' इस कथनु ऊभा थिकां माथइ हाथ चडावतां भणी करी गोडिहिलियां थाई माथउं भुइं लगाडी मुहुंती मुहबारि देई 'पनरसन्हं दिवसाणं पनरसन्हं राईणं' इसउं कही, 'चउमासइ चउन्हं मासाणं अट्ठन्हं पक्खाणं विसोत्तरु सउ राइंदियाणं' इसउं कही, 'संवत्सरि दुवालसन्हं मासाणं चउवीसन्हं पक्खाणं त्रिन्हिसई साठ राइंदियाणं' इसउं कही, 'इच्छं जं किं चि अप्पित्तियं इत्यादि कही जउ बि साधु ऊगरता हुयई तउ पक्खियदिवसि त्रिन्हि खामणां, चउमासइ पांच खामणां, संवत्सरि सात खामणां कीजई। पाछइ ऊठी बि बानणां दे करी देवसियं आलोइयं पडिकंता प्रत्येकखामणेणं 'अब्भुट्ठिओहं अभितरपक्खियं खामेमि, चउमासइ चउमासियं खामेमि संवत्सरि संवत्सरियं खामेमि' इसउं कही प्रत्येक खामणां कीजइं। तदनंतर बि बांनणां दे 'देवसियं आलोइयं पडिक्वंतं पक्खियं पडिक्कमावहे' इसउं कही करी चउमासइ 'चउमासियं पडिकमावेह” इसउं कही संवत्सरि 'संवत्सरियं 10 पडिकमावेह" इसउं कही करी 'करेमि भंते' इत्यादि 'इच्छामि ठामि काउस्सगं जो मे पक्खिओ अइयारो' इत्यादि चउमासइ 'चउमासिओ अइयारो कओ' इत्यादि संवत्सरि 'संवत्सरिओ अइयारो कओ' इत्यादि कही करी 'तस्सुत्तरीकरणेणं' कही शक्तिसंभवि सव्वहीं काउस्सग्गु कीजइ । 8342) एकु श्रावकु आचार्यमिश्रहं' आगइ आवी एकु खमासमणु दे करी भणइ 'इच्छाकारेण 15 संदिसह भगवन ! सूत्रु संदिसावउं,' गुरि 'संदिसावहु' इसइ भणिइ हूंतइ बीजउं खमासमणु दे करी 'भगवन् सूत्रु काढउं' इसउं भणइ । गुरि 'भणउ' इसइ कहिइ हूंतइ 'इच्छं' इस भणी करी, ऊभउ थिकउ हाथे जोडिए मुहि मुहुंती दीधी त्रिन्हि नमस्कार कही मधुरस्वरि व्यक्ताक्षरु सावधानचित्तु सूत्राथु मनि चीतवतउ हूंतउ पडिकमणा सूत्रु भणइ । बीजा काउस्सग्गि वर्तमान सावधान थिका सांभलइं। साधु सरसां पडिकमतां हंतां त्रिन्हिसइं साठ पक्खियसूत्र सांभलई। शक्तिअसंभावि बइठा थिका सांभलई. सूत्रप्रांति सव्वे काउस्सग्गु करई। संपूर्णिण सूत्रि भणिइ हूंतइ नमुक्कारेण पारित्ता ऊभां थिका त्रिन्हि 20 नमस्कार कही पाछइ बइसी करी पूर्ववत् पडिकमणासूत्रु गुणियइ । 'पडिक्कमे देवसियं सव्वं' एह नइ थानकि 'पक्खियं सव्वं चउमासइ चउमासियं सव्वं, संवत्सरि संवत्सरियं सव्वं' इसउं कहियइ । सूत्रगुणनानंतरु 'अब्भुटिओमि आराहणाए' कही एक खमासमणु दे करी कहियइ 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् मूलगुण उत्तरगुण अतिचारविसुद्धिनिमित्तु काउस्सग्गु करहं' इसउं भणियइ । गुरि 'करउ' इसइ कहिई हूंतइ 'इच्छं' इसउं भणी करी 'अन्नत्थूससिएणं' इत्यादि भणी काउस्सग्गु कीजइ । पक्खिए 25 त्रिन्हिसइं ऊसास बारह लोगस्सुज्जोयगरे, चउमासइ पांचसई ऊसास वीस लोगस्सुजोयगरे, संवत्सरि अट्ठोत्तरुसहस्सु ऊसास चियालीस लोगस्सुज्जोयगरे एक नमस्कारु चीतवियइं । नमुक्कारेण पारित्ता लोगस्सुज्जोयगरे संपूर्ण कहियइ । पाछइ बइसी मुहंती सरीरु पडिलेही वि बानणां दे पर्यंतखामणउं कीजइ। चत्तारि वार खमासमणु दे दे त्रिन्हि त्रिन्हि नमस्कार कहियई। ए चत्तारि थोभवांदणां कहियइं । तउ पाछइ इच्छामो अणुसहि इस भणियइ । 'नित्थारग पारगा होह' इसा गुरुवचनश्रवणा-30 नंतर आघउं देवसिउ पडिकमियइ । केवलं भवनदेवता काउस्सग्गु थुइ अधिक कहियइ । स्तोत्रु पाक्षिक चतुर्मासक संवत्सरप्रतिक्रमणि निश्चइ सउं 'अजियं जिउ' अजितशांति स्तवु कहियई । लघु स्तवनु ‘उवसगहरं पासं' निश्चई सउं कहेवउं । इति पाक्षिकादि प्रतिक्रमणविधि । 8341) 2 B.-वहे। 8342) 1 Bh.-मिश्र। कहियइ। 2 Bh. omits. Bh. भणियइ। 4 Bh. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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