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________________ 8286). २९६--२९९] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत ८३ नहीं त्रीजउ ३ । ए त्रिन्हि भांगा' मणेणं वायाए लद्धा । तथा इसीही जि परि मणेणं कारण य त्रिन्हि भांगा लाभई। तथा अपर पुणि त्रिन्हि भांगा' वायाए काएण य लाभई । एवं नव भांगा। पांचमउ मूलभेदु हुयउ । अथ छट्ठउ कहियइ-न करइ न करावइ मणेणं एकु । न करइ अनेरा करता अनुमनइ नहीं मणेणं बीजउ । न करावइ अनेरा करता अनुमनइ नहीं मणेणं त्रीजउ । एवं वायाए तिन्नि । कारण वि तिनि लब्भंति । एवं नव भांगा। छट्ठउ मूलभेदु भणिउ । इयाणिं सातमउ कहियइ-न करइ मणेणं 5 वायाए काएण य एकु । न कारवइ मणसा इंहि बीजउ । अनेरा करता हूंता अनुमनइ नहीं मणसा ईंहि जीजउ । सातमउ मूलभेदु भणिउ । अथ आठमउ भणियइ-न करइ मणेणं वायाए एकु । तथा मणेणं काएण य बीजउ । वायाए काएण य त्रीजउ । एवं न करावइ इत्थ वि तिन्नि भंगा। एवं नव भंगा आठमउ मूलभेटु भणिउ । अथ नवमउ मूलभेदु भणियई-न करइ मणेणं एकु, न करावइ मणेणं बीजउ, अनेरा करता हूंता अनुमनइ नहीं मणेणं त्रीजउ । एवं वायाए तिन्नि । काएण य तिन्नि । एवं भंगा नव । 10 नवमउ मूलभेदु भणिउ । ईहां पहिलइ भांगइ एक भांगउ, बीजइ त्रिन्हि भंगा ३, बीजइ भांगइ त्रिन्हि भांगा। चउथइ भांगइ त्रिन्हि भांगा ३, पांचमइ भांगइ नव भांगा ९, छट्ठइ भांगइ नव भांगा ९, सातमइ भांगइ त्रिन्हि भांगा ३, आठमइ भांगइ नव भांगा ९, नवमइ भांगइ नव भांगा ९ सर्व संख्या ४९। तत्र अतीत सावद्य तणउं प्रतिक्रमणु, प्रत्युत्पन्नवर्तमान सावद्य तणउं संवरणु, अनागतसावद्य तणउं प्रत्याख्यानु । इसी परि कालत्रयि करी गुणित हूंता इगुणपंचास भांगा एकु सउ सतेतालु हुयइ । 15 तथा चाह लद्धफलमाणमेयं भंगा उ हवंति अउणपन्नासं । तीया-ऽणागय-संपयगुणियं कालेण होइ इमं ॥ [२९६] सीयालं भंगसयं कह कालतिएण होइ गुणणाओ। तीयस्स य पडिक्कमणं पञ्चुप्पन्नस्स संवरणं ॥ [२९७] 20 पञ्चक्खाणस्स तहा होइ य एसस्स एव गुणणाओ। कालतिएणं भणियं जिण-गणहर-वायगाईहिं ॥ [२९८] सीयालं भंगसयं जस्स सुबुद्धीइ होइ उवलद्धं । सो खलु पञ्चक्खाणे कुसलो सेसा सव्वे अकुसला उ ॥ [२९९] तथा एकु पञ्चक्खाणु करइ, एकु करावइ, बिउं पदे करी चउभंगी। तत्र जाणतउ जाणता कन्हइ 25 करइ शुद्ध १ । जाणतउ अजाणता कन्हइ गुरु नइ अभावि गुरुबहुमानबुद्धि करी गुरु छई पितृपितृव्यादिक तींह नइ समीपि करइ तउ शुद्ध २ । अजाणु जाणता समीपि संक्षेपिहिं जाणी करी करइ तउ शुद्ध ३ अजाणु अजाण समीपि करइ सर्वथा अशुद्ध ४ । गृहस्थप्रत्याख्यानभंगविचारु । 8286) अथ साधु उद्दिसी 'तिविहं तिविहेण' इति सत्तावीस भेद प्रत्याख्यान तणा भणियइंहिंसादि पंचकु साधु करइ नहीं करावइ नहीं अनेरा करता हूंता अनुमनइ नहीं। तत्र “करेमि भंते ! 30 सामाइयं" इणि करी पांच समिति संग्रही “सव्वं सावजं जोगं पञ्चक्खामि” इणि करी त्रिन्हि गुप्ति संग्रही। जीवरक्षादिप्रवृत्तिविषइ समिति प्रवर्तई, जीवहिंसादिनिग्रहविषइ गुप्ति प्रवर्त्तई । तउ पाछइ 'तिविहं तिविहेण' एकु, आठ प्रवचनमातर ९, कालत्रय करी गुणित सत्तावीस साधुप्रत्याख्यानभंगा हवंति । प्रत्याख्यानभंगद्वारु हूयउं । $285) 1 B. drops lines between 1...1. 2 Bh. omits. 3 Bh. भणिइ (an alteration over final-उ)। 4 Bh. कारवइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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