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षडावश्यक बालावबोधवृत्ति
[ $284 - 8285 ) २८९-२९५ (284) अत्र शिष्यु भणइ - भगवन् ! देशविरत रहई एउ भेदु किम संभवइ; तेह रहई अनुमतिनिषेध तणा अभावइत, इसउं न कहिवूं । आपणा विषयबाहिरि श्रावकहीं रहई अनुमतिनिषेधु संभवइ, नहि स्वयंभूरमणमत्स्यादिघातविषइ अनुमति संभवइ । तदुक्तम्
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'न करे' इच्चाइतिगं गिहिणो कह होइ देसविरयस्स । भन्नइ विसयस्स बहिं पडिसेहो अणुमईए वि || ही जि विषइ भाष्यकारु पृच्छा अनइ ऊतरु कहइ
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[ २९० ]
[ २९१ ]
तो कह नित्तीऽणुमइनिसेहु त्ति सेसविसयम्मि | सामत्थेणं नत्थउ तिविहं तिविहेण को दोसो ? ॥ निर्युक्त माहि आपणाई विषय माहि सामस्त्यभावि करी अनुमतिदान तणा अभावइतर अनुमति. निषेधु भणिउ, अनेरइ थानकि स्वयंभूरमणादिकि तिविहं तिविहेण निषेधि किस देसु । तथा पुत्रादिसंततिनिमित्तु जिणि सावद्यव्यापारु दीधर हुयइ तेह एकादसी प्रतिमा प्रतिपन्न रहई 'तिविहं तिविहेण ' परिहारु संभवइ । तदुक्तम्
केई भांति गिहिणो तिविहं तिविहेण नत्थि संवरणं । तं न, जओ निहिं पन्नत्ती' विसेसेणं ||
पुतासंतइनिमित्तुमुत्तुं इक्कादसिं पवन्नस्स ।
पति के गिहिणो दिक्खाभिमुहस्स तिविहं पि ॥
पुनरपि शिष्यु भइ - किसी परि मनि करी करण कारण अनुमति हुयई । आह
कह पुण मणसा करणं कारावणु अणुमई य' ।
जह वय-तणुजोगेहिं करणारं तह भवे मणसा ||
तयहीणत्ता वयतणुकरणाईण अहव उमणकरणं । सावज जोगगमणं पनतं वीयरागेहिं ॥
कारवणं पुण माणसा चिंतेइ करेउ एस सावजं । चिंतेती उ कए पुण सुड्डु कयं अणुमई होइ ॥ एतलइ पहिलउ भंगु हुयउ ।
[ २९३ ]
जेतीवार काय नउ वचन नउ व्यापारु रहिउ हुयइ सर्वथा तेतीवार केवल मनव्यापारु जुहुयइ ।
[ २८९ ]
$284) 1 B. gloss श्रावकप्रज्ञप्ति माहि ।
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[ २९२ ]
(285) न करइ न करावइ अनेरा करता हूंता अनुमनइ नहीं । मनि करी वचनि करी एकु । मनि करी काय करी बीजउ । वचनि करी काय करी त्रीजउ ३ । एउ बीजउ मूलभेदु हुयउ । अथ अनंतरु त्रीजउ मूलभेदु कहियइ-न करइ न करावइ अनेरा करता हूंता अनुमनइ नहीं । मणेणं एक, वायाए बीजउ, काएणं त्रीजउ । एउ त्रीजउ मूलभेदु । अथ चउथउ कहियइ-न करइ न करावइ मणेणं 30 वायाए कारणं एकु | न करइ अनेरा करता हूंता अनुमनइ नहीं बीजउ । न करावइ अनेरा करता हूंता अनुमनइ नहीं चीजउ ३ । एउ चउथड मूलभेदु । इयाणिं पांचमउ कहियइ-न करइ न करावइ मणेणं वाया एकु । करइ नहीं अनेरा करता हूंता अनुमनइ नहीं बीजउ । न करावइ अनेरा हूंता अनुमनइ
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[ २९४ ]
[ २९५ ]
2 B. Bh. add तहा । 3B. Bh. do not have उ ।
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