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________________ 8252 - 8259 ) २५७ ] श्री तरुणप्रभाचार्यकृत संस असंसट्टे उद्भड तह अप्पलेवडा चेव । उगहिया पहिया उज्झियधम्माओ सत्तमिया ॥ [ २५७ ] एह गाह माहि भणी छई सात भिक्षा तींह माहि पहिली वि भिक्षा वर्जी करी बीजी पांच भिक्षा तींहं रहई ग्राहकु | भिक्षापंचकहीं माहि दिनि दिनि कृताभिग्रहु हूंतर एकदत्ति भक्त नी एक पानक नी लियइ । इसी परि एकु मासु गच्छ माहि परिकर्म्मणा करइ पाछइ गच्छ बाहिरि नीसरी करी एकुं मासु गच्छ माहि थिकs की उं सु करइ । रात्रि समइ मसाणादिकि थानकि वृक्षमूलि एकपुद्गलन्यस्तदृष्टि, किस अर्थ ? एक पुद्गल पूर्वापरपर्यायपर्यालोचन करत कायोत्सर्ग रहइ जिहां सूर्य अस्ति जाइ तेह थाहर हूंत सिंह - व्याघ्र - चित्रक - हस्तिप्रभृति महाभयहिं पगु मात्रू चालइ नहीं, प्रासुकजलादिकिहिं हस्तादिप्रक्षालनु करइ नहीं । इसी परि मासु बाहिरि रही करी प्रतिमा पूरी करइ, प्रतिमा समाति हूंती राजादिलोक संमुख' समानयनपूर्वकु चतुर्विधि श्रीसंधि पंचशब्दादिवादनादि महाप्रवेशक महोत्सव 10 करावीतइ नगर माहि आवइ । इसी परि बिउ मासे पहिली प्रतिमा' संपूर्ण नीपजइ । ७५ 8252 ) इसीही जि परि तिणिहिं जि वरसि बीजी प्रतिमा आरंभियइ । वि मास गच्छ माहि परिकर्मणा कीजइ, तउ पाछइ बाहिरि पूर्वरीतिहिं जि बि मास प्रतिमा कीजइ तर पाछइ गच्छ माहि पूर्वरीति करी आणियइ । इसी परि चउं मासे बीजी प्रतिमा संपूर्ण हुइ । (253) विशेषु पुणि एतलउ बीजी प्रतिमा बि दाति भक्त नी बि दाति पानक नी हुयई 115 इसी परि सातमी प्रतिमा सीम एक एक दाति भक्त पानक विषइ वाधती हुयइ । एवं पहिलइ वरसि प्रितिमा संपूर्ण हुई । 8254 ) त्रीजी प्रतिमा त्रिन्हि मास गच्छ माहि परिकर्म्मणा त्रिन्हि मास बाहिरि प्रतिमा कीजइ । इसी परिछए मासे बीजइ वरसि त्रीजी प्रतिमा पूजइ । 8255 ) मास ४ गच्छ माहि मास ४ बाहिरि एवं मासे ८ त्रीजइ वरसि चउथी प्रतिमा पूजइ । 20 8256 ) मास ५ गच्छ माहि चउथइ वरसि परिकर्म्मणा ई जि हुयइ । पांचमइ वरसि मास ५ बाहिरि प्रतिमा हुयइ । इसी परि बिहुं वरसे पांचमी प्रतिमा पूजइ । 8257 ) मास ६ गच्छ माहि परिकर्म्मणा छट्ठइ वरसि हुयइ सातमइ वरसि मास ६ बाहिरि छट्ठी प्रतिमा पूजइ । (258) मास ७ गच्छ माहि परिकर्म्मणा आठमइ वरसि हुयइ, मास ७ बाहिरि नवमइ 25 वरसि सातमी प्रतिमा पूजइ । $259 ) इसी परि नवे वरसे छप्पन्ने मासे सात प्रतिमा संपूर्ण कीजइं । तथा च भणितम् - Jain Education International 'मासाई सत्ता' इति । 'पढमा' इति प्रथमा । आठमी प्रतिमा साते दिवसे 'च' चतुर्थे त्रिउं आंबिले एकांतरित करी पूजइ, चतुर्थि कीधइ पानक परिहारु करिवउ, गच्छ माहि थिकां कीजइ राति सीम उत्तान पार्श्ववर्त्ति स्थानि सूते रहिवउं । 'बिइया' नवमी प्रतिमा पुणि इसी परि '"चरं' चतुर्थे 30 त्रिडं आंबिले एकांतरिते करी पूजइ । नवमी गच्छ बाहिरि कीजइ तथा उत्कटका सनसंस्थितहं रहियई अथवा लगंडु वांकडं लाकडु जिम हुइ तिम सूईयइ अथवा आयतदंड बद्धदंड जिम पाधरां होई माथउं अनइ पग भुई लगाडियां नहीं समस्तराति इसी परि सूते रहियइ । एवं 'तइया' दसमी प्रतिमा पुणि $251 ) 3 B. om.ts - पर्या - 1 4 B. drops - मा। 5 B समुख । 6 Bh. बिहुँ । 7 Bh. adds पूरी । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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