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________________ षडावश्यकवालावबोधवृत्ति [$260 - 262). २५८-२६१ जिम नवमी प्रतिमा कीजइ तिम दसमी प्रतिमा पुणि कीजइ । इसी परि ए त्रिन्हि प्रतिमा एकवीसे दिवसे संपूर्ण कीजई । इगारमी प्रतिमा अहोरात्रिकी नामि करी कहियइ । आंबिलु करी सकलु अहोरात्रु ग्राम बाहिरि रही प्रलंबित भुज करी काउ लग्गु कीजइ, पाछइ चतुर्थ' बि कीजइं । इसी परि त्रिउं दिवसे इगारमी प्रतिमा पूजइ । तथा दिवसि आंबिलु कीजइ रात्रि ग्राम बाहिरि ईषत्प्रारभाराभिधान 5 सिद्धिशिला तेह नइ विषइ निर्निमेषदृष्टि विन्यासि कीधइ बे पग मेली करी भुज लंबमान करी सकल रात्रि जिनमुद्रा वर्तमानु काउस्सग्गि रहइ । पाछइ पानकाहाररहित त्रिन्हि उपवास करइ । इसी परि चउं दिवसे बारमी प्रतिमा पूजइ । आठमी प्रतिमा हूंती बारमी प्रतिमा सीम दाति न हुयइं । जेतिवार सर्वइ प्रतिमा संपूर्ण हुयई तेतीवार महात्मा रहई अनेकि लब्धि ऊपजई इति साधुप्रतिमाविचारु सिद्धांत तणइ अनुसारि मई लिखिउ छइ । अनेरोई जु को विशेषु हुयइ सु पुणि गीतार्थहं महांतु अनुग्रहु 10 करी लिखिवउ । $260) 'अभिग्रहा' इति । द्रव्य-क्षेत्र-कालभाव भेदइतउ अभिग्रहु चउं भेदे हुयइ । यथा द्रव्यइतउ जे किमइ खलखंडादिकु द्रव्यु लहिसु तउ लेसु । क्षेत्रइतउ जइ धनवंतादि घरि लहिसु तउ लेसु । कालइतउ जउ भिक्षाकालु अतिक्रमिउ होइसिइ तउ लेसु । भावइतउ जउ' दायकु हसनादि क्रिया करतउ देसिइ तउ लेसु । इसी परि चतुर्विध अभिग्रह जाणिवा । अथवा पूर्विहिं विस्तरि करी अभिग्रह चतुर्विधइ 15 भणिया छई तिम जाणिवा । ए पूर्वभणित पिंडविसोही प्रमुख सगलाई जउ मेलियई तउ साधु तणा सर्वइ उत्तरगुण बाणवइ संख्यात । 'मो वियाणाहि' किसउ अथु ? शिष्य आगइ गुरु कहइ-हे शिष्य । तउं 'वियाणाहि' जाणि । 'मो' ईहां पादपूरणनिमित्तु छइ । अथवा बायाला अडेव य पणुवीसा बार बार सय चेव । दव्वाइ चउरभिगह भेया खलु उत्तरगुणाणं ॥ [२५८] 20 इति व्यवहार-सिद्धांतानुसारि करी पिंडविसुद्धि तणा भेद बइतालीस । यथा-उद्गमदोष सोल, उत्पादनादोष सोल, एषणादोष दस, ईहं बइतालीसही तणा परिहार । बइतालीस पिंडविसुद्धिभेद, समिति पांच गुप्ति त्रिन्हि', एवंरूप आठ समिति, भावना पंचवीस-एक एक महाव्रत प्रति पांच पांच भावना भावइतउ । $261) यथा भावनाभि वितानि पञ्चभिः पञ्चभिः क्रमात् । महाव्रतानि नो कस्य साधयन्त्यव्ययं पदम् ॥ __ [२५९] तद्यथा मनोगुत्यैषणाऽऽदानेर्याभिः समितिभिः सदा । दृष्टान्नपानग्रहणेनाहिंसां भावयेत् सुधीः ।। [२६०] 30 मनोगुप्ति १ एषणासमिति २ आदानभांडमात्रनिक्षेपणासमिति ३ ईर्यासमिति ४ दृष्टान्नपानग्रहणलक्षण ५ पांच भावना प्रथम महाव्रत तणी जाणेवी। $262 ) हास्य-लोभ-भय-क्रोधप्रत्याख्यानैर्निरन्तरम् । आलोच्य भाषणेनाऽपि भावयेत् सूनृतव्रतम् ॥ [ २६१] $259 ) 1 Bh. चउथ। 2 Bh. जि। 260) 1 Bh. जइ। 2 Bh. changes order त्रिन्हि गुप्ति। 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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