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________________ ७४ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$248 - $251 ). २५५-२५६ सु जिनकल्पाधिकारियउ साधु सगलाई चऊद पूर्वसूत्र ‘उक्कइयावइयाई' किसउ अर्यु ? छेहला आखर हूंतउ ऋमि ऋमि धुरिलइ आखरि आवइ, धुरिला आखर हूंतउ ऋमि ऋमि छेहलइ आखरि जाइ । तथा एकांतर आलापक प्रहणि करी मूल हूंतउं सूत्रु तां परावर्तइ जां छेहु । तउ आलापक हूंतउं एकांतर ग्रहणि करी धुरि आवइ । इसी परि आचारनामकु नवमउं पूर्व तेह माहि त्रीजउं वस्तु तेह माहि 5 जु प्रकार कहिउ छइ तिणि प्रकारि करी तिम सूत्रु परावर्त्तइ जिम ऊसासप्रमाणु यथोक्तु जाणइ तउ मुहूर्त पौरुषी दिवस अहोरात्र काल विषइ परिमाणु जाणइ ए कालतुलना ३ । $248) एकत्वतुलना कहियइ अन्नो देहाउ अहं नाणत्तं जस्स एवं उवलद्धं । सो किंचि आहरिकं न कुणइ देहस्स भंगे वि॥ [२५५ ] 10 हउं देह हूंतउ अनेरउ इसी परि नाणत्तं नानात्वम्-भेदु जेह रहइं उवलद्ध जाणिउं हुयइ सु देहभंगिहिं आहरिकु उत्रासु भउ न करइं इति एकत्वतुलना ४ । $249) बलतुलना कहियइ एमेव बलं मुणिणो अभिक्खआसेवणाइ तं होइ । ___ लंखग-मल्ले उवमा आसकिसोरे य जुग्गविए॥ [२५६ ] 15 एवं इसी परि बलभावना करी देहु तिम सहाविवउं जिम अवश्यकरणीयविषइ बलहानि शरीरि न हुयई । ननु तपु करतां देहबलु जाइ तउ किसी परि बलतुलना ? इसउं न भणिवू', देहबलु धृतिबलसूचानिमित्तु', बलभावना करी तिम यतना करेवी जिम देहअपचयभाविहिं धृति समुत्साहवंत हुयइ जिम परीषहोपसर्ग हेलाई जिणइ, तथा सर्वइ भावना धृतिबलपूर्व तिणि कारणि विशेषि करी धृतिबलभावना भावेवी जिम अतिसबल उपसर्ग संभविहिं आपणउं कार्यु साधइ, न पुणि धृति रहई काई 20 असाध्यु छइ, सु पुणि तपोबलादिकु निरंतरं तपसंसेवनादि करी हुयई। 8250) अत्र दृष्टांतु लंखकु अनइ मल्लु अनइ अश्वकिसोरु 'जुग्गविओ" इसउं त्रिहुं नउं विशेषणु । तथा हि- लंखकु नटु जुग्गविओ' अभ्यास प्राप्त अभ्यासप्रकर्षइतउ रांदू ऊपरि पुणि नाचइ। मल्लु पुणि दुखि करी करणअभ्यसतउ अभ्यासप्रकर्षवशइतउ पाछइ सुखिहिं प्रतिमल्लु जिणइ । अश्वकिसोरु पुणि हस्तिप्रभृतिकहं हूंतउ बीहतउ दुक्खि करी हस्तिप्रमुखहं समीपि राहवियइ पाछइ 25 अभ्यासवशइतउ संग्राम माहि तेह समीपिहिं भाजइ नहीं। 8251) एषा दृष्टांतभावना दा तिकि मूलिगइ अर्थि जोडियइ। एवं इसी परि निरंतर तपसेपनि करी तपि न जीपई, सत्त्वावष्टंभु बलावलंबु तिणि करी देवादिकहीं हूंतउ बीहइ नहीं। सूत्रार्थचिंतनप्रमाणि कालु दिनरात्रि गतागतरूपु' जाणइ। एकत्वभावना हूंतउ यथोक्तु निस्संगु हुयइ, धृतिअवष्टंमि करी प्राणत्यागिहिं आपणपउं मेल्हइ नहीं । इसी परि जिम जिनकल्पी पहिलउं तुलना करइ तिम प्रतिमा 30 अंगीकरणहारु पुणि पहिलउं गच्छ माहि थिकउ तुलना करइ, तथा उत्कर्षइतउ किंचूण दसपूर्व जघन्यइतउ नवपूर्व त्रीजउं वस्तु तेह सीम सूत्रार्थधारकु जउ हुयइ उपसर्गसहु एषणाभिग्रहधरु-अलेपकृतवल्ल-चणकादिभिक्षाग्राहकु । किसउ अथु ?- • 8249 ) 1 Bh. भणियव्वं । 2 Bh. शूचा-। 8250 ) 1 B.-विउं। 251) 1 Bh. गतरूपु । 2 B. omits. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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