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________________ ७३ $244 - $247 ). २५०-२५४] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत ___$244) काउस्सग्गु प्रायश्चित्तविशुद्धिनिमित्तु अथवा कर्मनिर्जरानिमित्तु, सु छट्ठउ अंतरंगतप तणउ भेदु । एउ तपु जिनमतिहिं जि वापरइ न पुणि मिथ्यादर्शनि, इणि कारणि अंतरंगु अथवा जीव रहई अंतरंग शुद्धि इणि करी हुयइ इणि कारणि अंतरंगु । अनशनादि मिथ्यादर्शनहिं वापरइ अथवा बाह्यशुद्धिरूपु इणि कारणि बाह्यु । $245) अथ प्रतिमाविचारु लिखियइ मासाई सत्तंता पढमा बिइ तइय सत्तराइदिणा। अहराया एगराइ य भिक्खूपडिमाण बारसगं ॥ [२५०] भिक्षु तणी बार प्रतिमा वर्षाकालि न आरंभियई, किंतु ऋतुबद्धि कालि आरंभियई। अतिशयवंत गुरु नी अनुज्ञा हूंती शुभशकुननिमित्तसंभवि हूंतइ जेतीवार वज्रऋषभनाराचु संहननु १ ऋषभनाराचु संहननु २ नाराचु संहननु ३ ए संहनन हुयई। तींह नउं लक्षणु-ऋषभु पाटउ जिसउ हुयइ 10 तिसइ आकारि एकु अस्थि हाडु हुयइ, वज्र खीली जिसी हुयइ तिसइ आकारि बीजउं अस्थि हुयइ, बिहुँ अस्थि रहइं परस्परानुप्रवेशलक्षणु मर्कटबंधु नाराचु कहियइ । तथा च भणितम् रिसहो य होइ पट्टो वजं पुण कीलिया मुणेयव्वा । उभओ मक्कडबंधो नारायं तं वियाणाहि ॥ [२५१] जिणि शरीरि ऋषभादिक त्रिन्हइ हुयई सु वज्रऋषभनाराचु । जिणि बि हुयई सु ऋषभनाराचु । 15 जिणि एकु हुयइ सु नाराचु । तथा तवेण १ सत्तेण २ सुत्तेण ३ एगत्तेण बलेण य । । तुलणा पंचहा वुत्ता जिणकप्पं पडिवजओ ॥ .. . [२५२ ] चतुर्थषष्ठाऽष्टमादि तपु तां अभ्यसइ जां छम्मास तवि हिं सीदाइ नहीं, ए तपतुलना १ । .$246) सत्त्वतुलना पंचविध 20 पढमा उवस्सयंमी बिइया बाहिं तइया चउकंमि । सुन्नघरंमि चउत्थी तह पंचमिया मसाणंमि ॥ [२५३] उपाश्रय माहि प्रतिदिसि प्रतिमा काउस्सग्गि वर्तमानु रहइ सु तिसी परि रहितउ' मूषक-माजरिदिकह तणउं भउ तां जिणइ जां तींह नइ फरसिहिं रोमकंटकजनकू भउ न हुयई। किसउ अथु ? जेतलई रोम ऊधसई एतलू भउ न हुयइं । एतलइ पहिली सत्त्वतुलना १ । तउ बीजी उपाश्रय बाहरि 25 ऊपरि छाइयइ प्रदेसि पूर्व जिम प्रतिमा वर्तमानु रहई तिहां घणेरडं मार्जारादि भउ संभवइ तेह भय जिणिवा कारणि बाहिरि सत्त्वतुलना २ । त्रीजी चउकि । चतुर्थी' शून्यघरि । पंचमी मसाणि । तत्र बीजी कन्हा त्रीजी घणउं भउ । त्रीजी कन्हा चउथी घणउ भउ । चउथी कन्हा पंचमी घणउं भउ । ईंह पांचहीं तुलना करिउ तिम आपणपउ तोलइ जिम दिवससमइ रात्रिसमइ देवहीं सत्त्व हूंतउ चलावी न सकियइं इसी परि पंचविधसत्त्वतुलना बीजी मूलतुलना । 30 ___247) सूत्रतुलना कहियइ उक्कइयावइयाई सुत्ताई करेइ सो य सयाई । मुहुत्तद्धपोरसीओ दिणे य काले अहोरत्ते ॥ [२५४ ] (245) 1 Bh. आरंभीयई। $246) 1 Bh. रहतउ। 2 B. मूखक। 3 Bh. चउथी। 4 Bh, आपणउं। ष. बा.१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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